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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २५० ॥ अग्गे वि संगयमिणं संपइ एसोवयारकीय त्ति । वुत्तूण तेण दिण्णा सागरचंदस्स सा कण्णा ॥ २५२ ॥ तो सोहणम्मि | दिवसे दुण्ह वि ताणं महाविभूईए । अम्मापिऊहि विहिओ पहिट्ठचित्तेहि वीवाहो ॥ २५२ ॥ तो तेण विवाहेण पमुइयचित्ताई ताई जायाई । अक्खेहिं रमंताई व चिंतियदायस्स पडणेण ॥ २५३॥ तप्पभिई ताण दुण्ह वि समाणमणसाण सबकालं पि । वट्टइ परमा पीई परुप्परं सारसाणं व ॥ २५४ ॥ सागरचंदेण पिया सोहइ पियदंसणा पियमणेण । सहउदयवई सोमा चंदेण व चंदिया अहियं ॥ २५५॥ सरलाण सुसीलाणं ताण सुरूवाण णणु इमो जोगो । अणुरूवो संजाओ विहिणो सुइरं घडंतस्स ॥ २५६ ॥ ताण न कयावि जायइ परुप्परं पचया अवीसासो । सरलत्तणेण संकंति ताणि न कहिं पि विवरीयं | ॥ २५७॥ अह अण्णया कयाई सागरचंदस्स कत्थ वि गयस्स । तग्गेहे संपत्तो असोगदत्तो कुडिलचित्तो ॥ २५८॥ पियदंसणं पयंपइ रहम्मि धणदत्तसिद्विमुण्हाए । तुज्झ पिओ अणुरत्तो ता भयसु ममं तुमं सुयणु ! ॥ २५९॥ सोऊण इमं सहसा कुविया पडिभणइ तं पइ इमं सा । पाविट्ठ ! दुट्ठचिट्ठिय ! कहमेयं चिंतियं तुमए ? ॥ २६० ॥ अहवा वि जंपियं कह लज्जामजायवज्जिएण तए ? । रे पाव ! मित्तमिसओ णूणममित्तोऽसि अम्हाणं ॥ २६२॥ परदारेसु पवित्तिं मह पइणो जं च जंपसि हयास ! । तं खलु अप्पसरिच्छं धिद्धी ! पिच्छेसि सवं पि ॥ २६२॥ तुह दंसणेण पावं ता लहु नीहरसु पाव ! मह गेहा । इय आकुट्ठो तीए चोरुब स निग्गओ सिग्धं ॥ २६३ ॥ एसो निग्गच्छंतो गोहच्चाकारउच्च मलिणमुहो । इंतेण सागरेणं दिट्ठो पुट्ठो दुहनिमित्तं ॥ २६४ ॥ सो कूडकवडखाणी मुंचंतो दीहओहनीसासे । कूर्णतो ओट्ठउड जंपर कट्ठेण दुट्टप्पा ॥ २६५॥ बंधव ! ज दुण्णिमित्तं व ज दुप्पूरियं हिमद्दिवासीण । किं पुच्छसि दुहहेडं संसारे दुक्खभंडारे ? ॥ २६६॥ तह वि कहेमि For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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