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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तं पुत्रं सवलिया वि होऊणं । नवकार नियमसहिया मरिडं जाया नरिंदसुया ||१२|| जं दुक्करतवसज्यं पाविजइ कह वि मुणिवरेहिं पि । तं तुह जाईसरणं जायं नियमप्पभावेण ॥१३॥ किंच - नियमरहिओ उ जीवो तवं चरणं च कुणइ जइ तिबं । तं तं न देइ वुद्धिं दविणं व केलंतरविहीणं ॥ १४ ॥ | अच्छउ ता मणुयाणं तिरियाण वि बोहिकारणं नियमो । दीसंति जे गुणड्डा ते वि हु नियमप्पभावेण ॥ १५ ॥ जे अ पुण रयणिदियहं वयनियमविवज्जिया असंतुट्ठा। अमुणियसंतोसमुहा भमंति ते नरयतिरिएसु ॥ १६ ॥ ता कायको नियमो पढमं धम्मत्थियाण धम्मंगं । नियमरहिओ गणिज्जइ पसुब पुरिसो अहम्मपरो ॥१७॥ जं जाइरुवकुलबलसमिद्धिसहिअं सुमाणुसत्तमिणं । पत्तं बोहिनिमित्तं तं नवकारप्पभवेणं ॥ १८ ॥ ता नवकारो सुरमणुयसिद्धिसोक्खाण कारणं पढमं । भवजलहिनिमज्जंताण पाणिणं जाणवतं व ॥ १९॥ अवि - दुहियाण दुत्थियाणं आवइपडियाण बंदगहियाणं । गहरिक्खपीडियाणं पिसायवेयालगसियाणं ॥ २० ॥ गयसंडसीहवराहरिच्छच उपासरुद्ददेसानं नवकारो परिताणं ताणं भवभीयसत्ताणं ॥ २१॥ जं वालत्ते वि तए जाईणाणेण पाविया बोही । णाणीण मुनिवराणं अणुट्ठियं तं तए वयणं ॥ २२ ॥ ता मुणसु तुमं भद्दे ! | णाणं तह दंसणं चरित्तं च । रयणत्तयं च एवं एसो य पहो सिवपुरस्स ॥ २३॥ तत्थ य पढमं णाणं पंचवियप्पं जिणेहि पण्णत्तं । मइसुयओहीमण केवलाणि णाणाणि पंच इमे ||२४|| अट्ठावीसइभेयं मइनाणं तत्थ उग्गहाईया । चउरो भेया तहियं अवग्गहो होइ पुण दुविहो १ कलंतर 'व्याज' इति भाषायाम् । For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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