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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra सुदंसणारियम्मि ॥ ७१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गिहेवि गिहिधम्मं । गुरुचरणाय नमेउं तुट्टमणो नियगिहे पत्तो ॥ १२४० ॥ तप्पभिई तिक्कालं पूएइ निवो जिनिंदपडिमाओ । कुणइ य सुडुवउत्तो आवस्सयमुभयसंज्ञं पि ॥१२४१ || दाणं देइ जहरिहं पालइ पाएण निम्मलं सीलं । सत्तीए तबइ तवं सज्झायं कुणइ सुद्धमणो ॥१२४२ ॥ बहुबहुमाणपवित्तो सेवइ विमलं गुरूण पयकमलं । सावज्जकज्जभीरू पालइ रजं पि नयसज्जो ॥१२४३ ॥ पुधावरत्तकाले जागरमाणो ममत्तपरिचत्तो । धम्मज्झाणनिमित्तं इय भावइ भावणाओ पुणो ॥ १२४४ ॥ मेरे जीव ! रूवजोबणधणसयणसिणेहईसरियमाइ । सबमणिच्चं सुमिणोवलद्ध रिद्धिब जियलोए || १२४५ ॥ पियमायसामिमाई न कोइ सरणं जियस्स मरणम्मि । धम्मं मुत्तुं रण्णे दुद्धयगहियस्स व मिगस्स ॥१२४६॥ निवरंकसधननिधणप हुकिंकरपमुहविविहरूवेहिं । नच्चइ सुइरं जीवो रंगाऽऽयरिओ व रंगगओ || १२४७॥ इको पावइ जम्मं मरइ य इको समज्जिउ कम्मं । इक्को पावेण दुहं इको धम्मेण लहइ सुहं ॥ १२४८ ॥ चेयणगुणजीवाओ विगुणत्ता जइ सरीरमवि अण्णं । ता कह णु मुत्तु दंसणनाणे अण्णं ण अण्णंति ॥ १२४९ ॥ नवछिड्डुझरंतमहंत कलिलमलपसरपूरिए सययं । देहे गेहे रोगाण कुणइ सुमई कह सुइतं ? ॥१२५० ॥ जह नेहतुप्पियंगस्स होइ रयसंचओ तह जियस्स । मिच्छत्तपमुहबहुविहआसवजुत्तस्स कम्मचओ ॥१२५१॥ पिहियाऽऽसाविदुवारे रेणुध गिहे जलं व पोयम्मि । संवरपवरे जीवे पावं पविसइ न कया वि ॥ १२५२ ॥ अण्णाणपरवसत्ते जिओ सहतो खवेइ तणुकम्मं । सवसो सण्णाणी उण निज्जरइ खणेण वि अनंतं ॥ १२५३ ॥ चउदसरज्जुपमाणे लोए वालग्गमित्तमवि नत्थि । जीवेण जं न पुढं अनंतसो जन्ममरणेहिं ॥ १२५४ ॥ कह कहमवि गरुयगहीर जलहिजलगलियपवररयणं व । दुलहं लहिउं बोहिं तत्थ पमाइज्ज मा कह वि ॥ १२५५ ॥ गुणमणिरोहणगिरिणो पमायवणगहणभंगवरक For Private and Personal Use Only विजयकुमारसरूव परूवग नाम अट्ठ मुद्देसो । ॥ ७१ ॥
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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