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मुत्तुं वयसि तुमं तं मह गुरुदुक्खमण्णं च ॥१०८२॥ सामि! तुमं सिक्खविओ जइ सुमरसि तायसंतियं वयणं । इक्कच्चिय मह धूया छायब तए न मुत्तवा ॥१०८३॥ तेणुत्तं सबमहं सरामि सुंदरि! परं तुमं मग्गे। कहमहियाससि सुहलालियाऽसि सीयाssयवाइदुहं ॥१०८४॥ सा भणइ विसममग्गो वि मह घरं काणणं व कंतारं। भिक्खा वि सुहा सीयाऽऽयवाइ न दुहकर मज्झ ॥१०८५॥ जत्थ तुमं मह पासे किं मह जणएण? किं च ससुरेण? । मणनिबुइमेव सुहं सामि! सयणा पसंसंति ॥१०८६॥ जह एवं समदुक्खा ता पउणा होसु जेण वच्चामो। संपयमेव पयाणं किजइ किर किं वियप्पेणं?॥१०८७॥ एवं सो सकलत्तो सिसुसुयजुयलो सुहेलिदुल्ललिओ। एगागी पयचारी पयत्थिओ साहससहाओ ॥१०८८॥ कत्थ तयं ससुरसुहं ? जणयपसायाओ कत्थ ते भोगा?। इक्कंपयच्चिय नट्ठा अहो! हु विहिविलसियमपुवं ॥१०८९॥ इय सो माणिकधणो दुहममुणंतो अभिण्णमुहराओ । वच्चइ विसायरहिओ पसण्णचित्तो य भणियं च ॥१०९०॥ वसणे विसायरहिया संपत्तीए अणुत्तरा ण हंति । मरणे वि अणुधिग्गा साहससारा य सप्पुरिसा॥१०९॥ अह हरिरहियव गुहा सुरायरहिया य रायहाणिव । चायरहियव लच्छी मुणिमाला पसमविलयब ॥१०९२।। कुमररहिया जयंती न विरायइ सेसगुणसमग्गा वि। अहवाऽवणीयपयावा कह सोहं लहइ हारलया? ॥१०९॥ पञ्चागयपडिबंधो पच्छायावाऽनलेण तवियतणू । राया विसण्णवयणो विण्णत्तोमंतिवग्गेण ॥१०९४॥देव! किमेयमयंडम्मि वजदंडप्पहारसममसुहं । तणुमणसंतावकरं कुमारपरिभवणमावडियं? ॥१०९५॥ जुत्तमऽजुत्तं जाणंति देवपाया परं वयं भणिमो । अवियाणियमम्हेहिं न संगयं सामिणा विहियं ॥१०९६॥ तिलतुसमित्तं पि हु
१ सुखकेलिदुर्ललितः-आनन्दव्यसनी इत्यर्थः। २ युगपदेव ।
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