SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 144
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुदंसणागंधचकलाकुसलो पत्तच्छिज्जम्मि पत्तट्ठो ॥९७८॥ नरनारितुरयगयरहपुरवरपरमत्थलक्खणविहिण्णू । गंधगयजुत्तिनिउणो| विजयकुचरियम्मिचउरमई चित्तकम्मम्मि ॥९७९॥ लोयबवहारविऊ मंतपओगेसु नायपरमत्थो । परचित्तगहणदक्खो विसारओ सद्दसत्थेसुमारसरूव 18॥९८०॥ सा नस्थि कला तं नत्थि कोउयं तं च नत्थि विण्णाणं । जत्थ न सो पत्तट्ठो विसेसओ मल्लजुद्धम्मि ॥९८१॥ अहापू प्परूवग॥ ६२॥ अण्णया य पिक्खणयगीयवक्खित्तरायअत्थाणे । निवपाससुहासीणे सुहए नरविकमकुमारे ॥९८२॥ करकलियसुवण्णप-18नाम अट्टरायंडदंडदुद्धरिसभासुरसरीरो। आगंतूणं विष्णवइ सविणयं निवपडीहारो ॥९८३॥ हरिसउरसामिणो देव ! देवसेणस्सा मुद्देसो। दारदेसम्मि । चिट्ठइ दूओ देवस्स देसणं महइ किं कजं? ॥९८४॥ सिग्धं भद्द! पवेससु तमिइ निउत्ते निवेण स पविद्रो। कयसमुचियपडिवत्ती एवं विण्णविउमाढत्तो ॥९८५॥ संति पहु ! मज्झ पहुणो अइसयभूयाणि दुणि रयणाई । नियरूवोव-14 हसियतियससुंदरी कण्णगा एगा ॥९८६।। अवरो य रायमल्लो पडिभडकमलाण कालमेहुव । नामेण कमलमेहो विणिजि-1 याऽसेसमल्लगणो ॥९८७॥ तत्थऽपणया कयाई सुहासणत्थस्स रायअत्थाणे। सबालंकारमणोहरंगिया निययजणणीए॥९८८॥ पिउपायपणमणत्थं पट्टविया पुववणिया कण्णा । उच्छंगम्मि निविट्ठा पलोइया तयणु पिउणाऽवि॥९८९॥वरचिंतणत्थमेसा मण्णे पउमावईइ देवीए । पट्टविया मह पासे ता को णु इमीइ अणुरूवो ॥९९०॥ होहिइ भत्ता? भुवणे वि विसरिसाणं कए वि संबंधे। आजम्मं घरवासो दुहपासो होइ मिहुणाणं ॥९९१॥ इय दुहियावरचिंतणजलहिमहावत्तसंकडे पडिओ। राया सबाऽवत्थास दहयरी होइ जेण सुया॥१९॥ तत्तो रण्गा सयमेव पुच्छिया तुझ सीलमह! वच्छे ! केरिसगणो कहिजउ ॥२२॥ १ कांक्षति । MSCRCRACARBOARCLEASEASEX SONG For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy