________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सुदंसणा- चरियम्मि
S
॥५५॥
७७१॥ देवी कलावई वि हु निम्मलतवचरणसीलसुपवित्ता । मरिउं तहेव जाओ तत्थेव सुरो महिड्डीओ ॥७७२॥ तत्तो
| विजयकुचुयाई दुण्णि वि कइ वि भवे सुरनरेसु सुक्खाई। पाविय जहुत्तराई कमेण पावंति निवाणं ॥७७३॥ इय भद्दे! तुह कहिया मारसरूवसवित्थरं सीलधम्ममाहप्पं संपइ तवस्सरूवं सउदाहरणं सुणसु सम्मं ॥७७४॥
प्परूवगजह लंधणेहि खिजति रसविकारुभवा गरुयरोगा। तह तिवतवेण धुवं कम्माई सुचिक्कणाई पि ॥७७५॥ सो पुण नाम अट्ठदविडो भणिओ बज्झो अभितरो य जिणसमए । बज्झतवो छब्भेओ अभितरओ य छन्भेओ॥७७६॥ अणसणमूणो
मुद्देसो। यरिया वित्तीसंखेवणं रसच्चाओ। कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होइ ॥७७७॥ पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सम्झाओ । झाणं उस्सग्गो वि य अभितरओ तवो होइ ॥७७८॥ मंतेहि ओसहेहि य जह विजो हणइ लहु बहु पि विसं । चिरसंचियं पि कम्मं दुविहेण तवेण तह जीवो ॥७७९॥ जं नारया न कम्म खवंति बहुएहिं वाससहसेहिं । तं खलु चउत्थभोई जीवो निजरइ सुहभावो ॥७८०॥ न तवेण विणा जीवो असंखभवसंचियं खवइ कम्मं । किं दहिउँ कोइ पहू दवं विणा गरुयकतारं? ॥७८१॥ । किंच-सबासिं पयडीणं परिणामवसा उवकमो भणिओ। पायमऽनिकाइयाणं तवसा उ निकाइयाणं पि ॥७८२॥ जाइकुलरूवसुहिसयणलच्छिहीणो वि तिवतववसओ।थुबइ सुरेसरेण वि भत्तीए नंदिसेणुष ॥७८३॥ तवसा खणेण जिप्पइ कंदप्पो
॥५५॥ दलियतिजयदप्पो वि । इंदियतुरए दम्मति तह य अस्संदमेणेव ॥७८४॥ दुरियाई जंति दूर तिमिराई व समुदियम्मि
ECARASSA
For Private and Personal Use Only