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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatim.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणसंथुइपराओ ॥७५६॥ इय नयरजणाणंदं जणयंतीर समं पिययमाए । कयमंगलसयसहसं राया नियमंदिरे पत्तो॥७५७॥ आइटुं च विसिटुं वद्धावणयं तओ नरिंदेणं । उप्फालियसुयजम्मं चारगपरिमोयणाईयं ॥७५८॥ मरणा निवो नियत्तो मिलिया देवी सुओ य पढमु त्ति । अमयमयं पिव भुवणं जणाण जायं दिणे तम्मि ॥७५९॥ कयसयलजणच्छेरं उवहसियकुबेररिद्धिसुंदेरं । दिण्णाऽवारियभत्तं वद्धावणयं तहि पवत्तं ॥७६०॥ एवं पमोयसारे समइकते दुवालसाऽहम्मि । सुहिस-1 यणसम्मएणं वालस्स पइट्ठियं नामं ॥७६१।जं एस पुण्णवंतो जणणीजणयाण जीवणगुणेणं । कलमसुमिणेण लद्धो ता भण्णउ पुण्णकलसु त्ति ॥७६२॥ तो कुमरो जत्तेणं लालिज्जतो सुहेण अणुदियह । गिरिकंदरमल्लीणो वडइ सो चंपगत| रुब ॥७६३॥ राया तिवग्गसारं संखो संखंककुंदधवलजसो। सहिओ कलावईए चिरकालं पालए रजं ॥७६४॥ अह तत्थ समोसरिया गुरुणो सिरिअमियतेयनामाणो । तण्णमणत्थं पत्तो देवीइ समण्णिओ संखो ॥७६५॥ विहिपुवं वंदिता गुरुपयकमलं निवो सपरिवारो। उचियट्ठाणनिविट्ठो अह सूरी कहइ इय धम्मं ॥७६६॥ माणुस्सखित्तजाईकुल-3 रूवाऽऽरुग्गमाउयं बुद्धी। सवणुग्गहसद्धा संजमो य लोगम्मि दुलहाई॥७६७॥ सामग्गीइ इमाए पत्ताए रयणभूमिगाइ वर गिण्हह चरित्तरयणं चिंतारयणं व सुक्खकरं ॥७६८॥ इय सोउं संविग्गो राया वंदिय गुरुं गिहे गंतुं । रजम्मि पुण्णकलसं ठवइ सुयं गुरुविभूईए ॥७६९॥ देवीइ समं तत्तो पवइओ अमियतेयगुरुपासे । तिवतवचरणरओ विहरइ सबत्थ8 सह गुरुणा ॥७७०॥ सुत्तत्थगहियसारो दुहाऽवि संलेहणं विहेऊण । अणसणविहिणा मरिउ सोहम्मे सुरवरो जाओ १ उप्फालिअ० कथित । २ अमृतपूर्णमिव । RELAMOREAKIRECAST सुदंस०१० For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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