________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirtm.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
RECASEASEARCLEASEASONAGACASA
जहित्थ ॥४५४॥ भरहम्मि तामलित्तीइ उसभदत्तस्स वीरभद्दसुओ। जह तेण सिद्विसागरदत्तसुया इत्थ परिणीया ॥४५५॥ जाव तयं मुत्तूणं, पत्तो देसंतरे पई तस्स । ताव कहित्ता सो भणइ उट्ठिमो निवखणो जाओ ॥४५६॥ उद्वित्तु ससंभंतं, भणिओ पियदसणाइ सो एवं । साहसु सुपुरिस! पच्छा स वीरभद्दो गओ कत्थ ? ॥४५७॥ तो वामणेण भणिय, नाऽहं जंपेमि परमहेलाहिं । सद्धिं कहिं पि नियकुलकलंकभीओ सयाकालं ॥४५८॥ सा भणइ अस्थि एवं, कहइ कुलं तुह विसुद्धसीलं पि । सुकुलीण! तहवि साहसु जं गरुया नहि निद्दक्खिण्णा ॥४५९॥ जइ एवं तो कल्ले, कहिस्समिय वुत्तु निग्गओ एसो । कहिए निवस्स पुरिसेहि वइयरे सो वि विम्हइओ ॥४६०॥ तह बीयदिणे वि इमो कहइ तओ नियपुरीइ नीहरिउं । गुडियाइ सामवण्णं, अप्पं काउं परिभमंतो ॥४६॥ जह पत्तो रयणउरे, परिणीया ऽणंगसुंदरी तत्थ । जह तेण ताण इंताण सायरे पवहणं भग्गं ॥४६२॥ तोऽणंगसुंदरीए उट्ठतो सो पयंपिओ एवं । सो कत्थ वीरभद्दो ? सो आह सुए कहिस्सामि ॥४६॥ तइए वि दिणे एवं कहइ इमो पवहणम्मि भग्गम्मि । सो विहियसहजरूवो, दिट्ठो रइवल्लहेण जहा ॥४६४॥ इच्चाइ जाव इहयं रयणपहं मुत्तु सो गओ तुरियं । तीइ वि पुट्ठो पाओ कहिस्समिय वुत्तु नीहरिओ ॥४६५॥ इय सोउं सबाओ भणंति सबासिं नूनमम्हाणं । एगुच्चिय भत्तारो संपइ पुण कत्थ सो अत्थि? ॥४६६॥ सो एस सिद्धिसागर! जामाऊ वामणो इमो तुज्झ । तिण्हं पि तासि भत्ता कीलाए विरहदायारो ॥४६७॥ इय सोउ भणइ एवं ति वामणो कुंभगणहरं नमिओ । नाणनयणाण तुम्हं अगोयरं नत्थि किं पि जए ॥४६८॥ अह सिट्टी तुट्ठमणो वंदित्ता गणहरं समं
१ श्वस्-आगामी कल।
RECEIRRBARICRORSCRIBE
For Private and Personal Use Only