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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विजयकु ॥४४॥ मारसरुवप्परूवगनाम अट्ठमुद्देसो। सुदंसणा- चिट्ठाइ इमा वि सधम्मकम्मरया ॥४३९॥ अह ऽणंगसुंदरीए पुट्ठा पियदंसणाइ रयणपहा । साहसु सहि! तुह भत्ता चरियम्मि कस केरिसो? किमभिहाणो य? ॥४४०॥ सा भणइ बुद्धदासो नामेण स आगिईइ कणयप्पहो।सिंहलदीवनिवासी अणेग गुणगणरयणखाणी ॥४४१॥ तोऽणंगसुंदरी सा भणइ इमं भइणि ! मिलइ मह पइणा। सब पि किंतु विहडइ धम्मनिवासाऽऽगिइनामं ॥४४२॥ पियदसणा वि पभणइ, न घडइ मह धम्मनामवासितं । इय वुत्तु ताओ तिणि वि भयणि व सुहेण ठंति तहिं ॥४४३॥ तं नाउं निबुयमणो स वीरभद्दो कुऊहलपहाणो । काउं वामणरूवं, विहरइ सिच्छाइ इह नयरे| ॥४४४॥ विण्णाणनाणनवनवकलाहि कोउयसएहि पुरलोयं । विम्हावितो चिट्ठइ गुरुजणकयगरुयसम्माणो ॥४४५॥ ईसाणचंदराया, सुणित्तु एयं तयं समाहूय । गरुएण गउरवेणं, नियपासे ठवइ वामणयं ॥४४६॥ अह अण्णदिणे रण्णा, निसुयं जह इत्थ तिण्णि जुवईओ। संजइउवस्सयगया, चिट्ठति सुरंगणाउ व ॥४४७॥ पुरिसेण समं ताओ, केण वि न हसति नेव जंपंति । न निरिक्खंति य समुहं, चिट्ठति सया वि धम्मरया ॥४४८॥ तो रण्णा वामणओ, सो भणिओ भद्द! तह तुमं कुणसु । जंपति जह इमाओ, तो एसो भणइ आमं ति ॥४४९॥ तत्तो पहाणपुरिसेहि परिवुडो पउरलोयपरियरिओ। वामणओ संपत्तो बाहिं वसहीइ समणीणं ॥४५०॥ ठाऊण तहिं नियसहचराण कहिऊण जह ममं तुब्भे । पुच्छिज्ज किं पि कहं ति वुत्तु मज्झे गओ तत्थ ॥४५१॥ वंदित्तु साहुणीओ, वसहीमुहमंडवम्मि उवविट्ठो। वुत्तो तेहि नरेहिं, चित्तकह कहसु किं पि तुमं ॥४५२॥ अह तत्थ ताओ तिण्णि वि किमेस कहिहि ? त्ति साहुणीहि समं । सोउं समागयाओ तो जंपइ वामणो एवं ॥४५३॥ जाव न रण्णो ऽवसरु त्ति ताव किंचिवि अहं कहिस्सामि । तेहि वि तहत्ति भणिए भणइ इमो निसुणह 5555 ॥४४॥ 056 For Private and Personal Use Only
SR No.020764
Book TitleSudansana Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUmangvijay Gani
PublisherPushpchandra Kshemchandra Shah
Publication Year1932
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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