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॥ अहम् ॥ ॥ सुन्नापित संग्रह ॥
धर्माराधन का फल ।
यत्कन्याणकरोऽवतारसमयः स्वप्नानि जन्मोत्सवो । यद्रत्नादिकवृष्टिरिन्द्रविहिता यद्रूपराज्यश्रियः॥
यद्दानं व्रतसंपदुज्ज्वलतरा यत्केवल श्रीनवा । .. यद्रम्यातिशया जिने तदखिलं धर्मस्य विस्फुर्जितम् ॥१॥ तीर्थकरो की राज्यलक्ष्मी ।
संती कुंथू अ अरो, अरिहंता चेव चकवट्टी । ।
अवसेसा तिथ्थयरा, मंडलिया आसि रायाणो ॥२॥ धर्म से सात प्रकार की वृद्धि होती है।
मायुर्वृद्धिर्यशोवृद्धि-वृद्धिः प्रज्ञासुखश्रियां ।
धर्मसंतानवृद्धिश्च, धर्मात्सप्ताऽपि वृद्धयः ॥३॥ बीज से बीज होता है । धर्मवृद्धि ।
बीजेनैव भवेद्वीजं, प्रदीपेन प्रदीपकः । द्रव्येणैव भवेद् द्रव्यं, भवेनैव भवांतरः ॥४॥
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