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________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रतिज्ञापूर्वक स्वयं मिथ्या दुष्कृत आपवा मात्रथी जे पापनी शुद्धि थाय ते प्रतिक्रमण प्रायश्चित्त २, आलोचना अने प्रतिक्रमण ए बोथी (गुरुनी समक्ष आलोचना करीने गुरुना आदेशपूर्वक प्रतिक्रमण करे अने पछी मिथ्यादुष्कृत आपवाथी) पापनी शद्धि थाय ते मिश्रप्रायश्चित्त ३, त्याग करवाथी जे पापनी शुद्धि थाय ते विवेकप्रायश्चित्त, दा. त. आधाकर्मादि आहारर्नु ग्रहण कर्ये छते तेनो त्याग करवाथी पापनी शुद्धि थाय छे. ४, कायानी चेष्टाना निरोधरूप उपयोग मात्रथी जे पापनी शुद्धि थाय ते व्युत्सर्ग प्रायश्चित्त, जेम दुःस्वप्नथी थयेल पापनी कायोत्सर्ग मात्रथी शुद्धि थाय छे ५, जे पापनी शुद्धि नीवी विगेरे छ मास पर्यंत तप करवाथी थाय छे ते तप प्रायश्चित्त ६, जे प्रायश्चित्तमा संयमना पूर्व पर्यायनी रक्षा माटे दुष्ट व्याधिथी दूषित थयेल शरीरना अमुक भागना छेदननी जेम अमुक पर्यायनो छेद कराय छे ते छेद प्रायश्चित्त ७, जे प्रायश्चित्त प्राप्त थये छते समस्त संयमपर्यायनो छेद करीने फरीथी महाव्रतर्नु आरोपण कराय छे अर्थात् फरीथी दीक्षा अपाय छे ते मूलप्रायश्चित्त ८,जेणे फरीथी प्रतिसेवना करेल ते उत्थापना( फरीथी महाव्रतारोपण)मां अयोग्य छतो पण व्रतोमा किंचित काल स्थापन कराय छे ते अनवस्थाप्यता, ते ज्यां सुधी स्वीकारेलुं विशिष्ट तप पूर्ण नथी कर्यु त्यां सुधी होय छे, पछी तप पूर्ण करवाथी दोष रहित थयेल होवाथी व्रतोमां स्थापन कराय छे. कहेल तप ज्यां सुधी पूर्ण नथी कयु त्यां सुधी व्रत के लिंगमा स्थापन नथी करातुं माटे अनवस्थाप्यताप्रायश्चित्त ९, जे दोष सेववे छते लिंग, क्षेत्र, काल अने तपथी दोषना पारने पामे छे ते पागंचित. अहिं अच् धातु गतिना अर्थमां छे. ठेल्लामां छेल्लुं प्रायश्चित्त आछे अने ते उत्कृष्ट दोषमा जअपाय छे. १०. आ प्रतिसेवणा प्रायश्चित्त १. बीजुं संयोजन एटले एक जातिवाळा अतिचारनुं मिलन-एकत्र थर्बु ते संयोजना, जेम शय्यातरपिंड XXXXXXKOMMOKKKKKXXKKKKKKKKKXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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