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सर्वथा त्याग करे छे ते व्युत्सर्ग ४.
आलंबनसूत्र स्पष्ट छे, ते संबंधी गाथा जणावे छेअह खंतिमवजव-मुत्तीओ जिणमयप्पहाणाओ। आलंबणाई जेहिं उ, सुक्कज्झाणं समारुहाइ ॥३३॥
शांति, मार्दव, आर्जव अने निर्लोभता-आ चार जिनमतमा प्रधान छ, केम के कर्मक्षयना हेतुभूत होवाथी आ आलंबनो छे, जेनाद्वारा शुक्लध्यानरूप महेल प्रत्ये जीव आरोहण करे छे-चडे छे.
वे धर्मध्याननी अनुप्रेक्षाओ कहेवाय छे. 'अगंतवत्तियाणुप्पेह'त्ति. अनंता-अत्यंत विस्तृतवृत्ति-वर्तन के जर्नु अथवा अनंतपणाए वर्ने छे ते अनंतवर्ती, तेनो भाव ते अनंतार्तिता, जे भवपरंपरानी जाणवी, तेनी अनुप्रेक्षा (भावना) ते अनंतवृत्तितानुप्रेक्षा अथवा अनंतवर्तितानुप्रेक्षा. कडुं छे केएस अणाइ जीवो, संसारो सागरोव्व दुत्तारो। नारयतिरियनरामर-भवेसु परिहिंडए जीवो ॥३॥
अनादिकालनो आ जीव सागरनी जेम दुस्तर संसारमा नारक, तिर्यच, मनुष्य अने देवना भवोने विषे परिभ्रमण करे छे.
एवी रीते बीजी त्रण अनुप्रेक्षामां पण समास करवो. विशेष ए के-'विपरिणामे' ति० वस्तुओर्नु विविध प्रकारे परिणमन थq ते विपरिणाम. कयुं छे केसव्वट्ठाणाइं असा-सयाई इह चेव देवलोगे य । सुरअसुरनराईणं, रिद्धिविसेसा सहाई च ॥३५॥
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