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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्था XXXXXX XI नागपत्र सानुवाद ॥५४१॥४ बुद्धिः अगाउ पोते नहि जोयेल. वीजा पासेथी नहि सांभळेल अने मनवडे पण नहि विचारेल अर्थने ते जक्षणमां जम छे तम जेनावडे ४ स्थान ग्रहण कराय छे ते उभय लोक अविरुद्ध, एकांतिक फळवाळी आ औत्पत्तिकी बुद्धि छे. कयु छ के काध्ययने पुवमदिट्ठमसुयम-वेइयतक्खणविसुद्धगहियत्था । अव्वाहयफलजोगा, बुद्धी उप्पत्तियानाम ॥२१७॥ उद्देशः ४ भावार्थ उपर मुजब छे. आ बुद्धि नटपुत्र रोहक बिगैरेनी जेम जाणवी. कर्मसङ्घः गुरुनी शुश्रूषा-सेवारूप विनय जेमां कारण छ अथवा बिनय प्रधान छ जेमां ते २ वेनयिकी बुद्धि. वळी कार्यना भारने पार पहोंचाडवाना सामर्थ्यवाळी, धर्म, अर्थ अने कामशास्त्रो संबंधी सूत्रार्थना परमार्थने ग्रहण करनारी अने उभय लोकमां जीवाः फळवाळी आ वैनयिकी बुद्धि छे. कई छे के | सू०३६२भरनित्थरणसमत्था, तिवग्गसुत्तत्थगहिअपेयाला। उभओ लोगफलवती विणयसमुत्था हवइ बुद्धि॥२१०४ उक्तार्थ छे. आ बुद्धि नैमित्तिक सिद्धपुत्रना शिष्यादिनी जेम जाणवी. आचार्य-शिक्षक सिवाय शीखलं ते कर्म अने आचार्य पासेथी शीखेलुं ते शिल्प अथवा कोईक वखत करवामां आवतुं ते कर्म अने निरंतर व्यापार करातुं ते शिल्प जाणवू. कर्म-कार्यथी उत्पन्न थयेली बुद्धि ते कर्मजा. विवक्षित कार्यमा मनने जोडवाथी तेना परमार्थने जाणनारी, कार्यना अभ्यासथी अने विचारथी विस्तार पामेली तेमज 'सारं कयु' एम विद्वानोद्वारा प्रशंसा थाय तेवा फळवाळी त्रीजी कर्मजा बुद्धि छे. कयु छ के Xn५४१॥ ६५ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx Xxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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