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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie www.kobatirth.org बीस्थानाजपत्र पानुवाद ॥५३६॥ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxy पुरुष मधुंकुभनी जेम मधुकुंभ छ अने मधुपिधाननी जेम मधुपिधान छे, एम प्रथम भंगनी योजना करवी. त्रीजी गाथामा जे ४ स्थान हृदय कलुषमय-अप्रीतिवाळ, उपलक्षणथी पापवाल्लं अने जे मधुरभाषिणी जिह्वा ते जे पुरुषने विष नित्य विद्यमान छे ते पुरुष काध्ययने विपकुंभ अने मधुपिधान छे; कारण के तेनुं समानपणुं छे. (१४) (सू० ३६०) अहिं कहेल चतुर्थ पुरुष उपसर्गनो करनार उद्देश: थाय, माटे उपसर्गनी प्ररूपणा करवा माटे 'चउब्विहा उवसग्गे 'त्यादि० सूत्रपंचक कहे छ उपसर्गाः चउव्विहा उवसग्गा पं० तं०-दिव्वा माणुस्सा तिरिक्खजोणिया आयसंचेयणिज्जा १, दिव्वा उवसग्गा चउठिवहा पं० तं०-हासा पाओसा वीमंसा पुढोवेमाता २, माणुस्सा उवसग्गा चउठिवहा पं० २०-हासा पाओसा वीमंसा कुसीलपडिसेवणया ३, तिरिक्खजोणिया उवसग्गा चउम्विहा पं० २०-भता पदोसा आहारहेडं अवच्चलेणसारक्खणया ४, आतसंचेयणिज्जा उवसग्गा चउव्विहा पं० सं०-घट्टणता पवडणता थंभणता लेसणता ५ । सू० ३६१ मूलार्थ:-चार प्रकारना उपसौ कहेला छे, ते आ प्रमाणे-दिव्या-देव संबंधी, मनुष्य संबंधी, तिर्यचयोनिक संबंधी अने. पोताथी ज करायेला. (१) दिव्य उपसर्गो चार प्रकारना कहेला छे, ते आ प्रमाण-हास्यथी, प्रद्वेषथी, विमर्श-परीक्षाथी अने जुदी जुदी रीते हास्यादिथी. (२) मनुष्य संबंधी उपसा चार प्रकारना कहेला छे, ते आ प्रमाणे -हास्यथी, प्रद्वेषथी, परीक्षा-IX थी अने कुशील सेवयानी इच्छाथी. (३) तियंचयोनिक संबंधी उपसर्गो चार प्रकारना कहेला छे, ते आ प्रमाणे-भयथी, 1 ॥५३६ (XXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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