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प्रथम निकृष्ट- तपवडे कृश करेल शरीरवाळो छे अने पछी पण निकृष्ट छे, एवी रीते अहिं प्रथम (३९) सूत्रनुं व्याख्यान कर अने बीजं (४०) सूत्र तो जेम कहेलुं छे तेम कहेवुं. (४०) बुधत्वना कार्यभूत सत्क्रियाना योगथी बुध. कां छे के-" भणनार, भावनार अने बीजा तत्वना चिंतको, आ बधाय व्यसनवाळा के माटे हे राजन् ! जे क्रियावान ते ज पंडित छे. (१)” वळी बुध - विवेक सहित अंतःकरण होवाथी-आ एक, बीजो बुध-सत्क्रियावाळो छे अने विवेक रहित अंतःकरण होवाथी अबुध छे. जो असत्क्रियावाळो होवाथी अबुध अने विवेक सहित चित्त होवाथी बुध छे. चोथो तो उभयना निषेधथी अबुध - अबुध छे. (४१) अनंतर सूत्रवडे ए ज स्पष्ट कराय छे-सत्क्रियावाळो होवाथी बुध, अने जाणनार छे हृदय जेनुं ते बुधहृदय-विवेक युक्त मन होवाथी, अथवा शाखनो जाण होवाथी बुध अने बुधहृदय तो कार्यमां अमूढ लक्षवाळो होवाथी-आ एक, एवी रीते बीजा ण भांगा पण विचारवा योग्य छे. (४२) १ आत्मानुकंपक- आत्माना हितने विषे प्रवर्त्तनार ते प्रत्येकबुद्ध के जिनकल्पिक मुनि अथवा बीजानी अपेक्षा न करनार निर्दय, २ परानुकंपक ते कृतकृत्य थवावडे तीर्थंकर अथवा पोतानी अपेक्षा सिवाय दयारूप एक रसवाळा मेतार्यमुनिनी जेम. ३ उभयनो अनुकंपक ते स्थविरकल्पी साधु, ४ उभयनी अनुकंपा नहि करनार ते पापात्मा कालसौकरिक विगेरे (४३) (सू० ३५२ ) अनंतर पुरुषोना भेदो कथा हवे तेना वेदबडे संपादन करवा
* प्रत्येकबुद्धादि मुनिओ, एकलविहारो होवाथो अन्य मुनिओनो वैयावृत्त्यादि करता नथी तेम प्रायः उपदेशादि आपता न होवाथी बीजाने उपकार करता नथी. आ कारणने अंगे परानुकंपक कहेला छे पण बीजा जोवोनी अनुकंपा न करे एम समजतुं नहिं केमके तेओ दयाळु छे.
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