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काध्ययने
भीस्थानागपत्र सानुबाद ॥ ५१७॥
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आचार्य जातिथी एरंड-हीन कुलवाळो पण शालपर्याय-ज्ञानादि गुणयुक्त छे अने ४ कोईक आचार्य एरंड-जातिथी हीन कुल- |४४ स्थान वाळो अने एरंडपर्याय-ज्ञानादि गुणथी हीन छे. (१९) चार प्रकारना वृक्षो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक * वृक्ष शाल नामर्नु अने शाल परिवारवाळु छे, २ कोईक शालनामा अने एरंडना परिवारवालु छ, ३ कोईक एरंड.
उदेशः १ नामा अने शालना परिवारवाळू तथा ४ कोईक वृक्ष एरंड नामर्नु अने एरंडना परिवारवाल्लु छे. (२०) आ
पुष्करसंव
ताद्या मेघदृष्टांत चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक आचार्य शाल समान उत्तम गुणयुक्त छे अने शाल परिवार
पुरुषाः,करउत्तम गुणयुक्त परिवारवाळा छे. ए प्रमाणे चतुभंगी जाणवी. (२०) आ संबंधमां चार गाथाओनो अर्थ आ प्रमाणे छ-"शालवृक्षो. ण्डकपुरुषाः ना मध्यमां जेम शाल नामनुं वृक्ष, वृक्षोनो राजा होय छे तेम उत्तम आचार्य, सुंदर शिष्योवडे राजा समान जाणवा अर्थात् वृक्ष-मत्स्यसुधर्मास्वामी जेवा स्वयं आचार्य पण उत्तम अने जंबूस्वामी विगरे उत्तम परिवार जाणवो॥१॥ एरंड वृक्षोनी मध्यमां गोलपकटा: जेम शाल वृक्षोनो राजा होय छे तेम असुंदर शिष्योना मध्यमां सुंदर आचार्य होय छे. जेम स्वयं गर्गाचार्य उत्तम अने तेनो
चतुष्पपरिवार असुंदर हतो ॥ २ ॥ शाल वृक्षोनी मध्यमां जेम एरंड वृक्षोनो राजा होय छे तेम सुंदर शिष्योनी मध्यमां असुंदर
दाद्याः आचार्य होय छे. जेम अभव्य अंगारमर्दक आचार्य उत्तम पांच सो शिष्योना परिवारवाळा हता ॥३॥ एरंड वृक्षोनी
पक्षिभिर्
निष्कृष्टामध्यम जेम एरंड वृक्षोनो राजा होय तेम असुंदर शिष्योनी मध्यमा असुंदर आचार्य जाणवो ॥४॥" चार प्रकारना
द्या:सू० मच्छो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक मच्छ अनुश्रोतचारी-नदीना प्रवाह प्रमाणे चाले छे, २ कोईक मच्छ प्रतिश्रोतचारी- ३४७-५२ | प्रवाहनी सामे चाले छे. ३ कोईक मच्छ प्रवाहना तीरमा चाले छे अने ४ कोईक मच्छ प्रवाहना मध्यमां चाले छे. (२२)ए IXM७॥
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