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श्रीस्थानाङ्गसूत्र
सानुवाद
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महाप्रतिज्ञा करे पण मेघनी जेम वरसनार नहि अर्थात स्वीकारेल कार्यनो संपादक नहि, बीजो कार्यनो करनार छे पण शब्दधी प्रतिज्ञा करता नथी. एवी रीते बीजो अने चोथो भांगो जाणवो. ( २ ) ' विज्जुयाइत्त ' ति० वीजळीनो करनार. (३) एम कोईक पुरुष पण शब्दवडे प्रतिज्ञानो करनार छे पण वीजळी करनार मेघनी जेम दानादि प्रतिज्ञात कार्यना आरंभनो आडंबर करनार नथी, बीजो तो आडंबर करनार छे पण प्रतिज्ञा करनार नथी. एम शेप त्रीजो तथा चौथो चंने भांगा पण समजवा. ( ४ ) कोईक दानादिवडे वरसनार छे पण दानादिना आरंभनो आडंबर करनार नथी. बीजो तो आडंबर करनार छे पण दानादि करतो नथी. श्रीजी बने करे छे अने चोथो कई पण करतो नथी. (५-६ ) कालवर्षी अवसरे बरसनार, एम अन्य त्रण भांगा जाणवा. ( ७ ) पुरुष तो अवसरे वरसनार ( मेघ )नी जेम अवसरे दान अने व्याख्यानादिवडे प्रवृत्ति करनार आ एक, बीजो तो आधी विपरीत, एम शेष ने मांगा जागवा. ( ८ ) क्षेत्र - धान्यादिनुं उत्पत्तिस्थान. ९ ) पुरुष तो क्षेत्रमां वर्षनारनी जेम पात्रने विप दान अने श्रुतादिनो निक्षेपक (वाचनार) - आ एक, बीजो आर्थी विपरीत, त्रीजो तथाप्रकारना विवेकनी विकळताने लईने अतिशय उदारताथी अथवा शासननी प्रभावना विगेरे कारणथी उभय स्वरूपपात्र तथा कुपात्रने आपनार अने चौथो तो दानादि कार्यने विष प्रवृत्ति नहि करनार ( कृपणादि ) (१०) जनयिता - जे मेघ वृष्टिवडे धान्यने अंकुरादिरूपे उत्पन्न करे छे अने निम्मापयिता तो जे मेघ वृष्टिवडे ज सफळपणाने प्राप्त करे छे. (११) एवी रीते माता, पिता पण प्रसिद्ध छे. एम आचार्य पण शिष्य प्रत्ये जोडवा योग्य छे. ( १२ ) विवक्षित भरत विगेरे क्षेत्रना अथवा प्रावृट् विगेरे काळना देश-विभागमां अने पोताना ( मेघना ) देशवडे जे वर्षे छे ते देशवर्षी, जे मेघ
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४ स्थान काध्ययने उद्देशः ४
गर्जितादि
मेघपुरुषा
सू० ३४६
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