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श्रीस्थानागपत्र सानुवाद "३४७॥
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ ध्यानानि सू०२४७
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( प्रवृत्ति )वाळु ध्यान, २ मृषानुबंधी-चा चुगली प्रमुख असत्यना अनुबंधवाल्लं ध्यान, ३ स्तेयानुबंधी-परद्रव्यने चोरवाना | अनुबंधवाळं ध्यान अने ४ संरक्षणानुबंधी-विषयना साधन अने धन विगेरेने सारी रक्षण करवाना अनुबंधवानुं ध्यान. रौद्रध्याननां चार लक्षणो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ ओसन्नदोष-हिंसादि दोषमाथी कोईक एक दोपमा विशेष प्रवृत्ति करे, २ बहुलदोष-हिंसा विगेरे बधा दोषोमा विशेष प्रवर्ते, ३ अज्ञानदोष-कुशास्त्रना संस्कारथी हिंसादिमा प्रवर्ते अने ४ ज्यां सुधी जीवे त्यां सुधी पाप करे ते आमरणांतदोष, धर्मध्यान चार प्रकार अने चार पदमां अवतारवाळु छे, ते आ प्रमाणे-१ आज्ञाविचय-१ प्रभुना वचननो सम्यक रीते विचार करवो, २ अपायविचय-रोग विगेरेथी थता दोषनो अने तेनाथी छूटवानो विचार करखो, ३ विपाकविचय-कर्मना विपाक-शुभाशुभ कळनो विचार करवो अने ४ संस्थानविचय-चौद राजलोकना स्वरूपर्नु चिंतन करवू, धर्मध्यानना चार लक्षणो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ आज्ञारुचि-भगवंतभापित अर्थ(नियुक्ति विगेरे)मां रुचि, २ निसर्गरुचि-उपदेश विना जिनप्रवचनमा रुचि, ३ सूत्ररुचि-आगमने विषे रुचि अने ४ अवगाढरुचि-द्वादशांगी सिद्धांतने विस्तारथी जाणवा. धर्मध्यानना चार आलंबनो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ वाचना-सूत्रार्थनुं आपq,२ प्रतिप्रच्छनाशंकाने टाळवा माटे गुरुने पूछर्बु, ३ परिवर्तना-भणेला सूत्रादिनुं याद करवु अने ४ अनुप्रेक्षा-सूत्रादिना रहस्यनुं चिंतन करवू, धर्मध्याननी चार अनुप्रेक्षा ( ध्यान पछीनी विचारणा) कहेली छे, ते आ प्रमाणे-१ एकत्वानुप्रेक्षा-'हुँ एक छु, मारो कोई नथी' इत्यादि विचारणा, २ अनित्यानुप्रेक्षा-संपत्ति विगेरे सर्व वस्तु क्षणभंगुर छे इत्यादि विचारणा, ३ अशरणानुप्रेक्षा-दुःखथी मुक्त करनार धर्म सिवाय अन्य कोई शरणभूत नथी इत्यादि विचारणा अने ४ संसारानुप्रेक्षा-संसारनी विचित्रतानी
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॥३४७॥
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