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पारी २, सुहुमत अन अजवे, सुकत्यहा
बाय
गुप्पेहा संसाराणुप्पेहा, सुके झाणे चउविहे चउप्पडोयारे पं० तं०-पुहुत्तवितके सवियारी १, | एगत्तवितके अवियारी २, सुहमकिरिते अणियही ३, समुच्छिन्नकिरिए अप्पडिवाती ४, सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पं० त०-अव्बहे असम्मोहे विवेगे विउस्सग्गे, सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पं० २०-खंती मुत्ती मद्दवे अजवे, सुक्कस्स णं झाणस्स चत्तारि अणुप्पेहाओ पं० तं०-अणंतवत्तियाणुप्पहा विष्परिणामाणप्पेहा असुभाणुप्पेहा अवायाणुप्पेहा । स० २४७ __मूलार्थ:-चार प्रकारना ध्यान कहेला छे, ते आ प्रमाणे-आर्तध्यान-पीडामां थयेलं, दृढ अध्यवसायरूप ध्यान, रौद्रध्यान-हिंसादि अति क्रूरताथी थयेलं ध्यान, धर्मध्यान-श्रुत अने चारित्र धर्मथी युक्त अने शुक्लध्यान-कर्ममलने शुद्ध करनारु ध्यान. आर्तध्यान चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाण-अमनोज्ञ वस्तुनो संबंध थवाथी तेना वियोगनी चिंता(विचारणा)वाळु थाय छे ते अनिष्टयोगातध्यान १, मनोज्ञ वस्तुनो संबंध थवाथी तेनो वियोग न थवानी चिंतावाळं थाय छे ते इष्टवियोगआध्यान २, आतंक-रोगनो संबंध थवाथी तेना वियोग(नाश)नी चिंतावाळं थाय छे ते रोगचिंतार्तध्यान ३ अन सेवायल कामभोगनो संबंध थवाथी तेनो वियोग न थवानी चिंतावाळु थाय छे ते भोगार्तध्यान छे ४. आध्यानना चार लक्षणो कहेला छे,ते आ प्रमाणे-१ क्रंदनता-मोटे सादे रोवं, २ शोचनता-दीनता करवी,३ तेपनता-आंसु पाडवा अने ४ परिदेवनता-वारंवार दुःखपूर्वक बोलवू. रौद्रध्यान चार प्रकारे कहेलुं छे, ते आ प्रमाणे-१ हिंसानुबंधी-जीवहिंसाना अनुबंध
अममलने से
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