________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Kxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx
नार अने ४ हिम्मतवालो-आ चार रोगीना गुगो छ. (३)" आ द्रव्यरोगनी चिकित्सा कही परंतु मोहरूप भावरोगनी चिकित्सा तो आ प्रमाणे जाणवीनिविगइ निब्बलोमे, तब उद्धट्राणमेव उब्भामे । वेयावच्चाहिंडग, मंडलि कप्पट्टियाहरण ॥१९८॥
निर्षिकृति-विगय त्याग करे, २ वाल, चणा विगेरे निर्बल आहार करे, ३ ऊगादरी को, ४ आयंबिल विगेरे तप करे, ५ कायोत्सर्ग करे, ६ भिक्षाचर्या करे, ७ वैयावृत्य करे, ८ भिन्न देशोने विषे विहार करे अने ९ सूत्रार्थनी मंडलीमां | प्रवेश करे. आ प्रमाणे मोह रोगनी चिकित्सा छे.. ___आ संबंधमां कोई एक कुलपुत्रीनुं उदाहरण छे. कोईक शेठनी पुत्री कई पण काम कर्या सिबाय सुखपूर्वक घरमा रहे छे. तेनो पति देशांतरमा गयेल छे. तेणी स्नानादि शंगारपरायण होवार्थी विषयवाळी थई तेथी धावमाताने क{ के-"कोईक पुरुषने लई आव.' त्यारे धावमाताए तेणीना मातापिताने ते वृत्तांत जगाव्यु. तेश्रोए विचारीने सपुत्राने कद्दु के-'धान्यने कोठारमाथी काढीने साफ कर.' इत्यादि अनेक कार्यमा जोडी आपबाथी श्रमिन थयेली ते रात्रे सुखपूर्वक मई जगा लागी. एक बखत धावमाताए पूछयु के-'हुं कोईक पुरुषने लावू ?" त्यारे तेणीए कयु के-'हुं तो थाकी गई छु, मने ऊंघ आवे छे.' एवी रीते साधुओ पण सूत्रार्थ देवा विगेरेना कार्यमा व्यग्र होवाथी तेमने कामनो संकल्प थतो नथी. (सू० ३४३)
चिकित्सको द्रव्यथी वरादि रोगो प्रत्ये अने भावथी रागादि प्रत्ये, तेमां आत्म संबंधी-वरादिनी अथवा कामादिनी
KXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXxxxxxx
For Private and Personal Use Only