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श्रीस्थानागपूत्र सानुवाद
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बाहिं दुढे ४ (१) चत्तारि पुरिसजाया पं० २०-सेतसे णाममेगे सेयंसे, सेयंसे नाममेगे पावंसे, पावंसे णाममेगे सेयंसे, पावंसे णाममेगे पावंसे ४ (१) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं-सेतंसे णाममेगे सेतंसेत्ति सालिसए, सेतसे णाममेगे पावंसेत्ति सालिसते ४ (२) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं-सेतंसेत्ति णाममेगे सेतंसेत्ति मण्णति, सेतंसेत्तिणाममेगे पावसेत्ति मगति ४ (३) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-सेयंसे णाममेगे सेयंसेत्ति सालिसते मन्नति, सेतंसे णाममेगे पावसेत्ति सालिसते मन्नति ४ (४) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं०-आघवतित्ता णाममेगे णो परिभावतित्ता, परिभावइत्ता णाम मेगे नो आघवतित्ता ४ (५) चत्तारि पुरिसजाया पं० तं-आघवतित्ता णाममेगे नो उंछजीविसंपन्ने, उंछजीविसंपन्ने णाममेगे णो आघवइत्ता ४ (६) चउव्विहा रुक्खविगुठवणा पं००-पवालत्ताए पत्तत्ताए पुप्फत्ताए फलत्ताए । सू०३४४
मूलार्थ:-चार प्रकारे व्याधि-रोग कहेल छे, ते आ प्रमाणे-वायुथी थयेल, पित्तथी थयेल, श्लेष्म का थी थयेल अने सनिपातथी थयेल. (सू०३४२) चार प्रकारे चिकित्सा-उपचार कहेल छे, ते आ प्रमाणे-वैद्य, औषधो, रोगी अने
४-थान. काध्ययन उद्देशः ४
व्याधिचिकित्साचिकित्सकवणशल्यश्रेयः पापाख्यायकादि.
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