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भीस्थानागपत्र सानुबाद ॥१९१॥
४ स्थानकाध्ययने उद्देशः३ आहरण
भेदाः मु०३३८
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विषे अकारणता थाय, आ प्रमाणे असमंजस थाय. एमज विरुद्ध धर्माध्यासनुं कथंचित् अभेदपणुं छते केवळ नित्यानित्य थतुं नथी. आ पण दूर कयु एटलं ज नहिं परंतु सर्वे वस्तु अनेकांतात्मक छ एम विकल्पज्ञातवडे स्वमतस्थापन कर्य. स्वमतनी स्थापनावडे विकल्पज्ञात, स्थापनाकर्म छे. अत्र नियुक्तिनी गाथाओ जणावे छठवणाकम्मं एक(अभेदमित्यर्थः),दिटुंतो तत्थ पुंडरीयंतु।अहवाऽवि सन्नढकण,हिंगुसिक्यं उदाहरणं।।
आ गाथानो भावार्थ उपर्युक्त छे. जे सव्यभिचार-दोष सहित हेतु सहसा-तत्काल स्वयं स्थापन करेल छ तेना समर्थन माटे जे दृष्टांत फरीथी स्थपाय छे ते स्थापनाकर्म. कडुं छे केसव्वभिचारं हेउं, सहसा वोत्तुं तमेव अन्नेहिं । उवहइ सप्पसरं, सामत्थं चऽप्पणो णाउं ॥१८८।। ___ सव्यभिचार हेतुने तत्काल कहीने ते ज हेतुने पोतार्नु प्रसंग सहित सामर्थ्य जाणीने अन्य हेतुओवडे पुष्ट करे..
ते आ प्रमाणे-शब्द कृतकत्व (करेल) होवाथी अनित्य छे. प्रतिपक्षी-वर्णात्मक शब्दने विषे कृतकत्व विद्यमान नी, केमके वो( अक्षरो )ने नित्यपणाए कहेल छे. कृतकत्व हेतु व्यभिचारी (सदोष) छे. पूर्वपक्षी फरीथी कहे छे-वर्णात्मक शब्द कृतकत्व ( करायेल ) छे, पोताना कारण( ताल्वादि स्थान )ना भेदवडे घट-पटनी जेम भिद्यमान( भिन्नपणुं) होय छे. घटादिना दृष्टांतवंड ज वर्णोनुं कृतकत्व स्थापन कयु माटे स्थापनाकर्म थाय छे. 'पडुप्पन्नविणासि'त्ति० तत्काल उत्पन्न
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