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चार दिशाएथी चार पुरुषो कादववाळा मार्गावडे प्रवेश करवा माटे तैयार थया परंतु तेओ कमळने मेळव्या सिवाय कईममा खूची गया. अन्य पुरुष तो कांठा उपर रह्यो थको तेमज कर्दमने स्पा सिवाय ज अमोघवचनवडे पुंडरीकने मेळवतो हतो. आ दृष्टांत छे, अहिं उपनय आ प्रमाणे-कईमना स्थान जेवा विषयो, पुंडरीक समान राजादि भव्य पुरुष, चार पुरुषो समान परतीथिको, पंचम पुरुष समान साधु, अमोघ वचन समान धर्मदेशना अने पुष्करणी समान संसार. तेनाथी उद्धार समान निर्वाण छे. आ दृष्टांतने विषे विषयनी अभिलाषावाळा अन्यतीर्थिकोने संसारथी तारकपणुं नथी अने साधुने तो तेथी विपरीत छ अर्थात् भव्यना तारक छे. आ प्रमाणे कहेता आचार्य परमतना दृषणवडे स्वमतर्नु स्थापन कयु, आ दृष्टांत स्थापनाकम थाय छे. अथवा प्राप्त थयेल दूषणने दूर करीने पोताना अभिप्रायनी स्थापना करवी, आवा प्रकारना अर्थनी प्राप्ति जेनाथी थाय ते स्थापनाकम. कोईक माळीए राजमार्गमा वडीनीत करवारूप अपराधने दूर करवा माटे तेस्थानने विषे पुष्पोनो पुंज करवाथी 'आ शुं छे ?' एम पूछनारा लोकोने 'आ हिंगशिव देव छ' एम बोलता थका ते माळीए व्यंतरना आयतननी स्थापना करी. आ आख्यानथी अवश्य उक्त अर्थ निश्चित थाय छे माटे आ स्थापनाकर्म छ. तथा नित्यानित्य वस्तु छे एम जिनमत कहे छ माटे असंगत छ कारण के विरुद्ध धर्मनो अध्यास छ, आ प्रमाणे वादीए आपेल क्षणने दर करवा माटे कहेवाय छ केविरुद्ध धर्माध्यास विकल्पनी जेम भेदन कारण नथी. विकल्प ज क्रमवडे थनार वणे( अक्षर )नो उल्लेख-कथन करनार विरुद्ध धर्म सहित हाय छे. कथंचित एक नहिं थाय एम नहिं अर्थात् एक थाय.खंडथी अलग करेल अक्षर संबंधी स्वरूपना लाभनो अभाव थवाथी अर्थात् काईपण शब्दना दरेक अक्षरोने जुदा पाडवाथी मुख्य अर्थनो अभाव थाय, प्रवृत्ति अने निवृत्तिने
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