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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie XXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX कहे छे-'चउही'त्यादि० सुगम छे. विशेष ए के-धर्मास्तिकायादि द्रव्योनी गति नथी माटे 'जीवा य पुग्गला य' एम कडं, 'नो संचाएंति' समर्थ 'बहिय'त्ति० लोकांतथी बहार अर्थात् अलोकने विषे जवा माटे समर्थ नथी, कारण के गतिनो अभाव छे-लोकना छेडाथी आगळ गतिलक्षण स्वभावनो अभाव छ; जेम दीपकनी शिखा नीचे न जाय तेम तेओ जई शकता नथी. तथा निरुपग्रहपणाथी-धर्मास्तिकायना अभावने लईने गतिमां सहाय करनारनो अभाव होबाथी गाडी विगेरेथी रहित पांगळानी जेम गमन थतुं नथी. वळी रुक्षपणाथी-रेतीनी मूठीनी जेम लोकना छेडाओने विषे पुद्गलो, लुखाशथी अवश्य एवी रीते परिणमे छे के जेने लईने आगळ जवा माटे समर्थ थता नथी. कर्मपुद्गलोनो पण तथाभाव-रुक्षभाव थये छते जीवोथी छूटा पडी जाय छ. बळी सिद्ध परमात्माओ निरुपग्रहतावडे-धर्मास्तिकायना अभावने लईने आगळ जता नथी. लोकानुभाव-लोकनी मर्यादा| बडे पोताना विषयक्षेत्रथी बीजे स्थळे सूर्यमंडळनी जेम आगळ जई शके नहि. (सू. ३३७) अनंतर अर्थो कह्या, कहेल अर्थमा दृष्टांतथी प्रायः प्राणीओने विश्वास उत्पन्न थाय छ माटे दृष्टांतना भेदोर्नु प्रतिपादन करवा माटे पांच सूत्रो कहे छ चउबिहे गाते पं० तं०-आहरणे, आहरणतद्देसे. आहरणतहोसे, उवन्नासोवणए १, आहरणे | चउविहे पं० तं०-अवाते, उवाते, ठवणाकम्मे, पडुप्पन्नविणासी २, आहरणतद्देसे चउबिहे पं० | तं०-अणुसिट्ठी, उवालंभे, पुच्छा, निस्सावयणे ३, आहरणतद्दोसे चउठिवहे पं० २०-अधम्मजुत्ते, | पडिलोमे, अंतोवणीते, दुरुवणीते ४, उवन्नासोवणए चउठिवहे पं० २०-तव्वत्थुते, तदन्नवत्थुते, | धर्मास्तिकायनापुइगलोनो पण तथापि पुद्गलो, लुसाडी विगेरेथी रहि xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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