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मीस्थानाङ्गसूत्र सानुबाद ॥४७५ ॥
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१ कोईक दरिद्री छे अने दुर्गतिमां जवावाळो छ, २ कोईक दरिद्री छे पण सद्गतिमां जवावाळो छ, ३ कोईक धनवान छे ४ स्थानअने दुर्गतिमा जवावाळो छ, ४ कोईक धनवान अने सद्गतिमां जवावाळो छे. (५) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ काभ्ययने प्रमाणे-१ कोईक दरिद्री अने दुर्गतिमां गयेल छे-द्रमकवत्, २ कोईक दरिद्री पण सुगतिमां गयेल छे-जिनदास श्रावकवत्, उद्देशः ३ ३ कोईक धनवान पण दुर्गतिमां गयेल छ-मम्मणशेठवत्, ४ कोईक धनवान अने सुगतिमां गयेल छे-आनंदादिवत्.(६) चार
आत्मंभप्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक प्रथम पण अज्ञानी अने पछी पण अज्ञानी, २ कोईक प्रथम अज्ञानी पण पछीथी ज्ञानी, ३ कोईक प्रथम ज्ञानी अने पछीथी अज्ञानी, ४ कोईक प्रथम पण ज्ञानी अने पछी पण ज्ञानी. (७) चार प्रकारना
रित्वादि पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक मलिन स्वभाववाळो अने अज्ञानबल अथवा अंधकारना बलवाळो, ते चोर प्रमुख,
चतुर्भङ्ग्यः २ कोईक मलिन स्वभाववालो पण ज्ञानवलवाळो, ते असदाचारी ज्ञानी, ३ कोईक निर्मळ स्वभाववाळो पण अज्ञानी छे,
सू० ३२७ ४ कोईक निर्मळ स्वभाववाळो अने ज्ञानी छे.(८) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-१ कोईक मलिन स्वभाववाळो अने अज्ञानरूप बळमां आनंद करनारो छे,२ कोईक मलिन स्वभाववालो पण ज्ञानरूप बळमां आनंद करनारो छे, ३ कोईक निर्मळ स्वभाववाळो पण अज्ञानरूप बळमां आनंद करनारो छे, ४ कोईक निर्मळ स्वभाववाळो अने ज्ञानरूप बळमां आनंद करनारो छे.(९) चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक परिज्ञातकर्मज्ञ परिज्ञावडे जाणीने कृषि विगेरे कर्मनुं प्रत्याख्यान करेल छ पण अपरिज्ञातसंज्ञ-आहारसंज्ञा विगेरेने जाणेल नथी, २ कोईक परिज्ञातसंज्ञ-आहारसंज्ञा विगेरेना स्वरूपने जाणे छे पण कृषि विगेरे कर्मथी निवृत्त थयेल नथी, ३ कोईक परिज्ञातकर्म अने परिज्ञातसंज्ञ छे, ४ कोईक परिज्ञात
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