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रजोद्घात् - आंधी चडवानी जेम. अग्निना विच्छेदमां द्रव्यथी ज अंधकार थाय छे केमके तथाप्रकारनो स्वभाव होय छे अथवा दीपक विगेरेनो अभाव छे अथवा भावथी पण अंधकार थाय छे केमके एकांत दुषम विगेरे काळमां आगम विगेरेनो अभाव होय छे. पूर्व देवनुं आगमन कयुं, हवे दुःखशय्या सूत्रनी पहेला देवाधिकारविशिष्ट सूत्रना विस्तारने कहे छे- 'चउही 'त्यादि० सुगम छे. विशेष एके - चार स्थानकोने विषे पण देवोना आगमनथी लोकमां उद्योत थाय छे. जन्म, दीक्षा अने ज्ञानोत्पादने विष तो स्वरूपथी पण उद्योत थाय छे. 'एवमिति' जेम लोकांधकार को तेम देवांधकार पण चार कारणोवडे थाय छे. देवानां स्था नोमां पण अरिहंतादिना विच्छेदकाळमां वस्तुना माहात्म्यथी क्षणमात्र अंधकार थाय छे. एवी रीते अहंतोना जन्म विगेरेने विषे देवोना स्थानोमां उद्योत थाय छे. देवसन्निपात - देवोनो समवाय ( मिलाप ), एवी ज रीते देवोत्कलिका - देवोनी लहेरी ( आनंदजन्य कल्लोल ), ' देवकहकहेत्ति' देवोनो प्रमोदपूर्वक कलकल ( महाध्वनि ) एमज देवेंद्रो मनुष्यलोकमां अरिहंतादिना जन्म विगेरेमा आवे, जेम श्रीजा स्थानकना प्रथम उद्देशकमां कधुं छे तेम देवेंद्रांना आगमन सूत्रथी आरंभीने लोकांतिकसूत्र पर्यंत कहे. मात्र अहिं परिनिर्वाणना महोत्सवने विषे आवे छे ते चोथुं कारण विशेष छे. ( सू० ३२४ ) प्रथम अरिहंतोना जन्म विगेरेना व्यतिकरद्वारा देवोनुं आगमन कां, हवे अरिहंतोना ज प्रवचनना अर्थने विषे दुःस्थित-दुष्ट रीते रहेल साधुने दुःखशय्याओ अने सुस्थित-सारी रीते रहेलने सुखशय्याओ होय छे ते हेतुथी बने सूत्र कहे छे.
चत्तारि दुहसेजाओ पं० तं० तत्थ खलु इमा पढमा दुइसेज्जा तं०-से णं मुंडे भवित्ता अगारातो
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