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भीस्थाबाङ्गसूत्र सानुवाद ॥४६८॥
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ठाणेहिं देविंदा माणुस्सं लोगं हव्वमागच्छंति एवं जहा तिठाणे जाव लोगंतिता देवा माणुस्सं ४ स्थान लोगं हव्यमागच्छेज्जा. तं०-अरहंतेहिं जायमाणेहिं जाव अरिहंताणं परिनिव्वाणमहिमासु।सू०३२४
काभ्ययने ___ मूलार्थः-चार कारणबडे लोकमां द्रव्यथी अने भावी पण अंधकार थाय छे, ते आ प्रमाणे-१ अरिहंतोनो विच्छेद थये
उद्देशा३ छते-मोक्ष गये छते, २ अरिहंते कहेल धर्मनो विच्छेद थये छते, ३ पूर्वगत-उत्पाद विगेरे पूर्वनो विच्छेद थये छते, ४ अमिनो
लोकान्धविच्छेद थये छते-अग्निना विच्छेदमा प्रायः द्रव्यथी अंधकार थाय छे. चार कारणबडे लोकमां द्रव्यथी अने भावथी उद्योत
कारादि थाय छे, ते आ प्रमाणे--१ अरिहंतोनो जन्म थये छते, २ अरिहंतोए दीक्षा लीधे छते, ३ अरिहंतोने केवलज्ञान उत्पन्न थवाना
सू० ३२४ महोत्सवोने विषे अने ४ अरिहंतोना निर्वाणना महोत्सवोने विषे. एवी रीते लोक अंधकारनी जेम देवना स्थानमां अरिहतादिना विच्छेदकालमां अंधकार थाय छे, अने अरिहंतादिना जन्म विगेरेने विषे देवना स्थानमा उद्योत थाय छे, देवनो समुदाय एकत्र थाय छ, देवोने उत्साह थाय छे अने देवोने विषे आनंदजन्य कोळाहळ थाय छे. चार कारणवडे देवेंद्रो मनुप्यलोकने विषे शीघ्र आवे छे. एवी रीते जेम त्रीजा ठाणामां कडं छे तेम यावत् लोकांतिक देवो मनुष्यलोकमां शीघ्र आवे छे त्यां सुधी कहे, ते आ प्रमाणे-अरिहंतोनो जन्म थये छते यावर अरिहंतोना निर्वाण महोत्सवोने विषे. (सू० ३२४) ____टीकार्य:-'चउही'त्यादि० स्पष्ट छे. विशेष ए के-लोकने विषे द्रव्यथी अने भावथी अंधकार ज्यां जे थाय ते जाणवू. संभावना कराय छे के-अरिहंतादिना विच्छेदमा द्रव्यथी अंधकार थाय छे केम के तेना उत्पादरूप छे. छत्रभंग विगेरे थये 12॥ ४६८॥
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