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श्रीस्था
★I ( ब्रह्मचर्यादि क्रियाने करनार ) छे ते कारणथी हुं त्यां जाउं, ते भगवंतोने वंदन करूं यावत् सेवा करूं. ३ देवलोकमां तत्काल नागपत्र
४ स्थानउत्पन्न थयेल देव यावत् अनासक्त तेने एवो विचार थाय छे के-मनुष्यभवने विपे मारी माता अथवा यावत् पुत्रवधू छे तेथी
काध्ययने मानुवाद त्यां जाउं अने तेनी पासे प्रगट थाउं, ते माता विगेरे मारी आवा प्रकारनी देव संबंधी, पूर्वभवमा मेळवेली, वर्तमानभवमा प्राप्त थयेली अने भोगमा सन्मुख आवेली दिव्य, देवनी ऋद्धि अने दिव्य देवनी कांतिने जुओ, ४ देवलोकमां उत्पन्न थयेल
उद्देशः ३ ॥४६५॥ देव यावत् अनासक्त तेने एवो विचार थाय हे के-मनुष्यभवने विषे मारा मित्र. सखा, सुहृद ( स्वजन), सहायक अथवा
माता पित्रासांगतिक (अतिपरिचित) छे तेओनो अने अमारो परस्पर संकेत करायेल हे अर्थात् कबूलात आपेल छ के-आपणामांथी * दिसमाःश्रादेवलोकथी जे प्रथम च्यवे तेने पाछळ रहेला देवे प्रतिबोध आपयो ( मेतार्यनी जेम ). आ प्रमाणे चार कारणोबडे देव शीघ्र |वकाः, वीरमनुष्यलोकमां आववा माटे समर्थ थाय छे. (सू० ३२३ )
श्रावकदेवटीकार्थ:-'अम्मापिइसमाणे '-१ मातापिता समान, केम के उपचार विना-साधुए कह्या सिवाय पण साधुओने त्वं, देवागविषे एकांत वात्सल्य भक्तिभाववाळा होय छे. २ तत्वना विचार विगेरेमा कठण वचनवडे अप्रीतिने लईने अल्पतर प्रेम होय
मानागमछे परंतु तथाप्रकारना प्रयोजनने विषे तो अत्यंत वात्सल्यवाळा होवाथी भाई समान छे, ३ उपचार सहित वचन विगेरेवडे
कारणानि प्रीतिनी क्षति( नाश) थवाथी अने ते प्रीतिनो नाश थये छते आपदाना समयमां पण उपेक्षा करनार होवाथी मित्र समान
सू०३२१छ अने ४ जेणीनो समान-( बन्नेनो एक ) पति छे ते सपत्नी. जेम शोक्य पोतानी शोक्य प्रत्येनी ईर्ष्याने लईने तेना छिद्रोने
३२३ जुए छे एम जे श्रावक साधुओने विषे षण जोवामां तत्पर होय अने उपकारने करनारो न होय ते सपत्नी (शोक्य ) समान
४॥४६५॥
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