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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalbirth.org Acharya Shri K asagarsuri Gyarmandie OxxxxxxxxxxxxxXXXXXXXXXXXXXXXXX) थयेल देव, दिव्य कामभोगने विषे मृर्निछत, गृह, ग्रथित अने आसक्त थयेल तेने मनुष्यना भव संबंधी मातापितादि उपरना प्रेमनो अभाव थाय छे अने देव संबंधी प्रेमनो संक्रम-प्रवेश थाय छे, ३ देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थयेल देव, दिव्य काम| भोगने विषे मूच्छित, गृद्ध, ग्रथित अने आसक्त थयेल, तेने एम विचार थाय छे के-हमणा जाउं छु, आ नाटक जोईने मुहर्त्तमा जाउं छु परंतु एक दिव्य नाटक जोतां बे हजार वर्ष चाल्या जाय छे तेटला काळमां अल्प आयुष्यवाळा तेना संबंधी मनुष्यो काळधर्म संयुक्त थाय छे अर्थात् मरण पामे छे, ४ देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थयेल देव, दिव्य कामभोगने विषे मूच्छित, गृद्ध, ग्रथित अने आसक्त थयेल तेने मनुष्यलोक संबंधी गंध, दिव्य गंधथी विपरीत अने इंद्रियादिने अमनोज्ञ थाय छ. ऊंचे पण मनुष्यलोक संबंधी गंध चारसो पांचसो योजन पर्यंत देवने आवे छे. आ जणावेल चार कारणवडे देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थयेल देव मनुष्यलोकमां आववा माटे इच्छे छे छतां शीघ्र आववा माटे समर्थ थतो नथी. चार कारणवडे देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थयेल देव,मनुष्यलोकमां शीघ्र आववा माटे इच्छे छे अने आश्वा माटे समर्थ पण थाय छे, ते आप्रमाणे १-देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थयेल देव, दिव्य कामभोगने विषे अमृञ्छित, अगृद्ध, अग्रथित अने अनासक्त एवा तेने आ प्रमाणे विचार थाय छे के-मनुष्यभवने विपे मारा आचार्य, उपाध्याय, प्रवत्तक, स्थविर, गणी, गणधर अथवा गणावच्छेदक छ, जेना प्रभावथी में आवा प्रकारनी प्रत्यक्ष दिव्य देव संबंधी ऋद्धि, देव संबंधी कांति, पूर्व उपाजी, हमणा प्राप्त करी, भोग्य अवस्थाने सन्मुख आवी माटे हुँ जाउं, ते भगवंतो प्रत्ये वंदन करूं यावत् पर्युपासना (सेवा) करु, २ देवलोकमां तत्काल उत्पन्न थियेल देव यावत् अनासक्त तेने एवो विचार थाय छे के-आ मनुष्यभवमां वर्तता ज्ञानी, तपस्वी अथवा अति दुष्करकारक xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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