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निग्रंथो कहेल छे, ते आ प्रमाणे-१ एक रात्निक [दीक्षापर्यायथी ज्येष्ठ] श्रमण-निग्रंथ, महाकर्मवाळा, कायिकी विगेरे महाक्रियावाळो, आतापनाने नहिं लेनारो अने समिति रहित ते धर्मनो आराधक थतो नथी.२ एक रात्निक श्रमण-निग्रंथ, लघुकर्मी, कायिकी विगेरे अल्प क्रियावाळो, आतापनाने लेनारो अने समितियुक्त छे ते धर्मनो आराधक थाय छे. ३ एक लघुरात्निक (दीक्षापर्यायमा लघु ) श्रमण-निग्रंथ, महाकर्मवाळो, महान् क्रियावाळो, आतापनाने नहिं लेनारो अने समिति रहित छे ते धर्मनो आराधक थतो नथी अने ४ एक लघुरात्निक श्रमण-निग्रंथ, लघुकर्मी, अल्प क्रियावाळो, आतापनाने लेनारो अने समिति सहित छे ते धर्मनो आराधक थाय छे. चार प्रकारनी साध्वीओ कहेली छ, ते आ प्रमाणे-रात्निका (दीक्षापर्याये मोटी) श्रमणी-निग्रंथीओ साधुओनी जेम चार प्रकारे कहेवी. चार प्रकारना श्रमणोपासको कहेला छे, ते आ प्रमाणे-रानिक ( मोटो) श्रमणोपासक, महाकमवाळो इत्यादि चार प्रकारे चार भांगा कहेवा. चार प्रकारनी श्रमणोपासिका कहेली छे, ते आ प्रमाणे-रात्निका ( मोटी) श्रमणोपासिका, महाकर्मवाळी इत्यादि पूर्वोक्त प्रकारे चार गमा (भांगा) कहेवा. (मू० ३२०)
टीकार्थः-'चत्तारी' त्यादि० आ सरळ छ. विशेष ए के-यान(गाडा)विगेरे, ते बळद विगेरेथी जोडेलु. वळी युक्तसमग्र सामग्रीवडे सहित अथवा प्रथम पण जोडेलु अने पछी पण जोडेलु आ एक, बीजुं बळदवडे जोडेलुं परंतु सामग्रीवडे रहित होवाथी अयुक्त, एम बीजो अने चोथो भांगो पण जाणवो. पुरुष तो धनादिवडे युक्त, वळी योग्य अनुष्ठानवडे युक्त अथवा सज्जनोवडे युक्त अथवा प्रथम पण धन अने धर्मना अनुष्ठान विगेरेथी युक्त अने पछी पण युक्त १, एम चार भांगा करवा. अथवा द्रव्यलिंगवडे युक्त अने भावलिंग( चारित्र )वडे युक्त ते प्रथम साधु, द्रव्यलिंगवडे युक्त पण भावलिंगवडे
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