________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
XxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxXKK)
भरणी पर्यंत दरेक चार चार नक्षत्रो छे. कृतिका नक्षत्रनो देव अग्नि छ यावत् भरणी नक्षत्रनो देव यम छ, एम दरेक नक्षत्रना चार चार देवो छे. चार अंगारक (मंगल) ग्रहो छे यावत् चार भावकेतु छ अर्थात् अध्यासी ग्रहो दरेक चार चार छे. लवणसमुद्रना चार दरवाजा कहला छे, ते आ प्रमाणे-विजय, वैजयंत, जंयत अने अपराजित. ते दरवाजाओ चार योजन पहोळाईवडे अने चार योजन प्रवेशवडे छे. त्यां चार महर्द्धिक देवो यावत् पल्योपमना स्थितिवाळा बसे छे, ते आ प्रमाणे-विजय, वैजयंत, जयंत अने अपराजित. ( स०३०५) धातकीखंडद्वीप, चक्रवाल विष्कम गोळाईना विस्तार)वडे चार लाख योजननो कहेलो छ. जंबूद्वीप नामना द्वीपनी बहार चार भरत अने चार ऐश्वत क्षेत्रो छे. एवी रीते जेम शब्दोदेशक वीजा स्थानकना त्रीजा उदेशकमां कह्यु छे तेम अहिं पण बधुं वर्णन कहे यावत् चार मेरुपर्वतनी चार चूलिका छे. (सू०३०६)
टीकार्थः-पूर्वादि चारे दिशाओमा क्रमशः विजयादि द्वारो छे. द्वारनी बे तरफनी शाखनो जे अंतर ते विष्फंभ-बन्ने शाखनी बच्चेनी पहोळाई चार योजननी छे. प्रवेश-जगतीना कोटनी बारशाख-बन्ने बाजुनी भीतनी एकेक कोशनी जाडाई अने आठ योजननी ऊंचाई हे. कथु छ केचउजायणविच्छिन्ना,अट्रेवय जोयगाणि उविद्धा।उभओवि कोसकोसं, कुड्डा बाहल्लओतेसिं॥११३॥ ___ भावार्थ उपर मुजब छे. पलिओवमट्टिईया, सुरगणपरिवारिया सदेवीया। एएस दारनामा, वसंति देवा महिड्डीया ॥११४ ॥
EKXXXXKKKKKKKXXXXXXXXXXXXXXXKKK)
For Private and Personal Use Only