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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्था बधा वक्षस्कार पर्वतो रत्नमय छे अने ते जे दिशाए निषध अने नीलवंत नामना वर्षधर पर्वत छे ते दिशाए-तेनी पासे नाङ्गसूत्र एक सो योजन भूमिमां ऊंटा अन चार सो योजन ऊंचा छे. त्यांथी मात्रायडे वृद्धि पामता जे दिशाए सीता अने सीतोदा नदी सानुवाद छे ते दिशाए-तनी पासे पांच सो गाउ (सवासो योजन) भूमिमां ऊंड। अने पांच सो योजन ऊंचा छे. आ हेतुथी ज अश्वना स्कंध सरखा आकारबडे रहेल छे. ए विजयादिनी पहोळाई नीचे प्रमाणे छे॥ ४२४॥ विजयाणं विक्खंभो, बावीससयाई तेरसहियाई पंचसए वक्खारा, पणुवीससयं च सलिलाओ । १०७।। बधा विजयामा प्रत्यकनो विष्कम (पहोळाई) बे हजार बसो अन किंचित् न्यून तेर योजन छे. वक्षस्कार पर्वतोनी पहोळाई पांच सो योजन छ अन अंतरनदीओनी पहोळाई सवा सो योजन छे. 'पचंते -जे जणाय छे ते पद-संख्यास्थान, ते अनेक प्रकारे छ माटे जघन्य-सर्वथी हीनपद ते जघन्यपद. तेमा विचार कये छते अवश्य भाववडे अहंत विगेरे चार होय छे अर्थात् ओछामा ओछा चार होय ज. मेरुपर्वतनी भूमिमां-सपाटीमां भद्रशाल वन छे. तेनी प्रथम मखलामां नंदनवन अने बीजी मेखलामा सौमनसबन छ अन शिखर उपर पंड कवन छे. अहिं आ संबंधी गाथा जणावे छे* बावीससहस्साइं, पुव्वावरमेरुभद्दसालवणं। अड्डाइजसया उण, दाहिणपासे य उत्तरओ ॥ १०८॥ | मेरुपर्वतने वलयाकारे वीटी रहेल भद्रशालवन, पूर्व अने पश्चिम दिशाए (प्रत्येक दिशामां) बावीश हजार योजन लांबो छे अने दक्षिण तथा उत्तरदिशाए. (प्रत्येक दिशामा ) अढीसो योजन पहोळो छे. Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः २ मानुषोत्तरकूटाः दुष्ष| मसुषमाव दि सू० ३००___३०२ Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx ॥ ४२४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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