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बीजा पण बार कूटो छे. पूर्व, दक्षिण. पश्चिम अने उत्तर दिशामा त्रण त्रण कूटो छे अने ते बारे कूटो एकेक देववडे अधिष्ठित छे. कडुं छे के-- पुवेण तिन्नि कुडा, दाहिणओ तिन्नि तिन्नि अवरेणं। उत्तरओ तिन्नि भवे. चउद्दिसिं माणुसनगस्स ॥१०॥
उक्तार्थ छे (मू० ३००)
अनंतर मानुषोत्तर पर्वतमा शिखररूप द्रव्यो कह्या, हवे तेनावडे अबरायेला क्षेत्ररूप द्रव्योर्नु चतुःस्थानकना अवतारने 'जंबूद्दीवेत्यादिना 'जंबूद्वीपमां भरत ऐरवत क्षेत्रने विषे इत्यादिथी आरंभीने 'चत्तारि मंदरचूलियाओ' (धातकीखंडना बे अने पुष्करद्वीपना बे मकी कुल चार ) मेरुपर्वत उपर चार चूलिकाओ छे ते अंत्य (छेवटना) ग्रंथवडे कहे छे. आ वर्णन स्पष्ट छे. विशेष ए के-चित्रकूट विगैरे सोळ वक्षस्कार पर्वतोनुं स्वरूप आ प्रमाणे छ| पंचसए बाणउए, सोलस यसहस्सदोकलाओ या विजया१वक्खारं २तर-नईण ३ तह वणमुहायामो
१ विजयो, २ वक्षस्कार पर्वतो, ३ अंतरनदीओ अने ४ सीता तथा सीतोदा नदीना बन्न पडख रहेला बनमुखोनो आयाम (लंबाई ) सोळ हजार पांचसो वाणु योजन अने ये कला १६५९२६२ छे. जत्तो वासहरगिरी, तत्तो जोयणसयं समवगाढा। चत्तारि जोयणसए, उविद्धा सव्वरयणमया ॥१०५॥ जत्तो पुण सलिलाओ, तत्तो पंचसयगाउउव्वेहो। पंचेव जोयणसए, उविद्धा आसखंधणिमा ॥१०६॥
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