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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx देवपवते णागपव्वते, जंबू० मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्वारपव्वया पं० तं०-सोमणसे विज्जुप्पभे गंधमायणे मालवंते, जंबूद्दीवे २ महाविदेहे वासे जहन्नपते चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पजिस्संति वा, जंबुद्दीवे २ मंदरपव्वते चत्तारि वणा पं० तं०-भद्दसालवणे नंदणवणे सोमणसवणे पंडगवणे, जंबू० मंदरे पव्वए पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पं० तं०-पंडुकंबलसिला अइपंडुकंबलसिला रत्तकंबलसिला अतिरत्तकंबलसिला, मंदरचूलिया णं उवरिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पन्नत्ता, एवं धायइसंडदीवपुरच्छिमद्धेवि कालं आदि करेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति, एवं जाव पुक्खरवरदीवपञ्चच्छिमद्धे जाव मंदरचूलियत्ति-जंबूद्दीवगआवस्समं तु कालाओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुवावरे पासे ॥१॥ सू० ३०२ मूलार्थ:-मानुषोत्तर पर्वतनी चारे विदिशाओने विषे चार कूट-शिखरो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-रत्नकूट, रत्नोचयकूट, | सर्वरत्नकूट अने रत्नसंचयकूट. (सू० ३००) जंबूद्वीप नामना द्वीपमा भरत अने ऐरवतक्षेत्रने विष अतीत (गई) उत्सार्पिणी * मूल सूत्रमा दिशा शब्न जणावेल छे परंतु पण दश दिशानी अपेक्षाए विदिशाने दिशा कहेवाय छे. Koxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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