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देवपवते णागपव्वते, जंबू० मंदरस्स पव्वयस्स चउसु विदिसासु चत्तारि वक्वारपव्वया पं० तं०-सोमणसे विज्जुप्पभे गंधमायणे मालवंते, जंबूद्दीवे २ महाविदेहे वासे जहन्नपते चत्तारि अरहंता चत्तारि चक्कवट्टी चत्तारि बलदेवा चत्तारि वासुदेवा उप्पजिंसु वा उप्पजंति वा उप्पजिस्संति वा, जंबुद्दीवे २ मंदरपव्वते चत्तारि वणा पं० तं०-भद्दसालवणे नंदणवणे सोमणसवणे पंडगवणे, जंबू० मंदरे पव्वए पंडगवणे चत्तारि अभिसेगसिलाओ पं० तं०-पंडुकंबलसिला अइपंडुकंबलसिला रत्तकंबलसिला अतिरत्तकंबलसिला, मंदरचूलिया णं उवरिं चत्तारि जोयणाई विक्खंभेणं पन्नत्ता, एवं धायइसंडदीवपुरच्छिमद्धेवि कालं आदि करेत्ता जाव मंदरचूलियत्ति, एवं जाव पुक्खरवरदीवपञ्चच्छिमद्धे जाव मंदरचूलियत्ति-जंबूद्दीवगआवस्समं तु कालाओ चूलिया जाव । धायइसंडे पुक्खरवरे य पुवावरे पासे ॥१॥ सू० ३०२
मूलार्थ:-मानुषोत्तर पर्वतनी चारे विदिशाओने विषे चार कूट-शिखरो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-रत्नकूट, रत्नोचयकूट, | सर्वरत्नकूट अने रत्नसंचयकूट. (सू० ३००) जंबूद्वीप नामना द्वीपमा भरत अने ऐरवतक्षेत्रने विष अतीत (गई) उत्सार्पिणी
* मूल सूत्रमा दिशा शब्न जणावेल छे परंतु पण दश दिशानी अपेक्षाए विदिशाने दिशा कहेवाय छे.
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