SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीस्थानाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ४१६॥ ४ स्थानकाभ्ययने उद्देशः२ प्रकृतिव न्धादि सू०२९६ KXxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx विपाक अर्थात् तीव्र विगेरे भेदविशिष्ट रसरूप, तेनो बंध ते अनुभावबंध, तथा जीवना प्रदेशोने विषे दरेक प्रकृति प्रत्ये चौकस परिमाणवाळा अनंतानंतकर्मप्रदेशोनो बंध-संबंध थवो ते परिमित परिमाणविशिष्ट गोळ विगेरेना मोदकना बंधनी जेम प्रदेशबंध. वृद्ध पुरुषो मोदकना दृष्टांतने आ प्रमाणे वर्णवे छ-जेम चोकस मोदक, लोट, गोळ, घृत अने *कटुभांड(शूठ विगेरे )थी बांध्यो थको कोईक मोदक वायुने हरनार, कोईक पित्तने हरनार अने कोईक कफने हरनार, कोईक मारनार, कोईक बुद्धिनी वृद्धि करनार अने कोईक व्यामोह-भ्रमित करनार होय छे. एवी रीते कोईक कर्मप्रकृति ज्ञानने आवरनार छ, कोईक दर्शनने आवरण करे छे, कोईक सुख दुःख विगरे वेदन( अनुभव )ने उत्पन्न करे छे. वळी जेम ते ज मोदकना नाश न थवारूप स्वभाववडे काळनी मर्यादारूप स्थिति होय छे एवी रीते कर्मनो पण ते स्वभाववडे नियतकाळ पर्यत रहे ते स्थितिबंध छे. जेम ते ज मोदकनो स्निग्ध, मधुर विगेरे एकगुण, द्विगुणादि भाववडे रस होय छे तेम ज कर्मनो पण देशघाति, सर्वघाति, शुभ-अशुभ अने तीव्र-मंदादि अनुभागबंध होय छे तथा जेम ते ज मोदकने लोट विगेरे द्रव्योर्नु परिमाणपणुं छे एवी रीते कर्मना पुद्गलोर्नु पण चोकस प्रमाणरूप प्रदेशबंधपणुं छे.जेनावडे कराय छे ते उपक्रम-बंधनपणुं, उदीरणपणुं विगेरेथी कर्मना परिणमवाना हेतुभूत जीवनी शक्तिविशेषरूप. अन्य स्थले 'उपक्रम ए करण शब्दथी रूढ थयेल छ अथवा उपक्रमण-बंधन विगेरेनो आरंभ ते उपक्रम. कयुं छे के-'स्यादारंभ उपक्रम'.तत्र बंधन-कर्मपुद्गलोना अने जीवना प्रदेशोना परस्पर संबंधरूप छे. आ * शूठथी मिश्रित मोदक वायु हरनार, द्राक्षादिथी पित्त हरनार,पोपर विगेरेथो कफ हरनार,सोमल विगेरेथो मारनार, ब्राह्मी, वज विगेरेथी बुद्धि वधारनार अने धतुराना बोन विगेरेथो मिश्रित भ्रमित करनार बने छे. KKKKKXXKKKKKKKKKKKK ४१६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy