________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
रूप- विपरिणामनोपक्रम. बंधनोपक्रम चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे- प्रकृतिबंधनोपक्रम, स्थितिबंधनोपक्रम, अनुभागबंधनोपक्रम अने प्रदेशबंधनोपक्रम. उदरिणोपक्रम चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे - प्रकृतिउदीरणोपक्रम, स्थितिउदरिणोपक्रम, अनुभागउदीरणोपक्रम अने प्रदेशउदीरणोपक्रम. उपशमनोपक्रम चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे- प्रकृतिउपशमनोपक्रम, स्थितिउपशमनोपक्रम, अनुभाग उपशमनोपक्रम अने प्रदेशउपशमनोपक्रम. विपरिणामनोपक्रम चार प्रकारे कहेल छे, ते आ प्रमाणे- प्रकृतिविपरिणामनापक्रम स्थितिविपरिणामनोपक्रम, अनुभागविपरिणाम नोपक्रम अने प्रदेशविपरिणामनोपक्रम. चार प्रकारे अल्पबहुत्व कहेल छे, ते आ प्रमाणे- प्रकृतिविषयक अल्पबहुत्व, स्थितिविषयक अल्पबहुत्व, अनुभागविषयक अल्पबहुत्व अने प्रदेशविषयक अल्पबहुत्व. चार प्रकारे संक्रम कहेल छे, ते आ प्रमाणे- बंधाती स्वजातीय उत्तरप्रकृतिमां बीजी प्रकृतिनुं संक्रमनुं ते प्रकृतिसंक्रम, एम स्थितिनो संक्रम, अनुभाग (रस)नो संक्रम अने प्रदेशनो संक्रम. चार प्रकारे निधत्त ( निधान) नी माफक कर्मने स्थापj (अर्थात् उद्वर्त्तना तथा अपवर्त्तना सिवाय बीजा करण जेमां न प्रवृत्ति शके तेयुं कर) कहेल छे, ते आ प्रमाणे- प्रकृतिनिधत्त, स्थितिनिधत्त, अनुभागनिधत्त अने प्रदेशनिधत्त. चार प्रकारे निकाचित (जे कर्म भोगव्या सिवाय छूटे ज नहि ) कहेल छे, ते आप्रमाणे- प्रकृतिनिकाचित, स्थितिनिकाचित, अनुभागनिकाचित अने प्रदेशनिकाचित. ( सू० २९६ )
टीकार्थ:- आ सूत्र स्पष्ट छे. विशेष ए के जीवने सकपायपणाथी कर्मने योग्य पुद्गलोनुं बंधन-ग्रहण थनुं ते बंध. तेमां कर्मनी प्रकृतिओ (अंशो) ना ज्ञानावरणीय विगेरे आठ भेदो छे. प्रकृतिओनो अथवा सामान्यतः कर्मनो बंध ते प्रकृतिबंध, स्थिति-प्रकृतिओनुं ज अवस्थान - रहेवारूप जघन्यादि भेदवडे भिन्न रूप ते स्थितिनो बंध-उत्पन्न कर ते स्थितिबंध, अनुभाव
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
**************************