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श्रीस्था नागपत्र सानुवाद ॥४०६॥
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तेमज कोईक मार्ग आदिमां पण अक्षम अने अंतमां पण अक्षेम छे (४), ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला
छे, ते आ प्रमाणे-कोईक पुरुष प्रथम क्षेम-क्रोधादिथी रहित अने पछी पण क्षेम छे, कोईक प्रथम क्षेम पण पछी अक्षेम | छे, कोईक प्रथम अक्षेम पण पछी क्षेम छे तेमज कोईक प्रथम पण अक्षेम अने पछी पण अक्षम छे (५),
चार प्रकारना मार्ग कहेल छे, ते आ प्रमाणे-कोईक मार्ग क्षेम (उपद्रव रहित) अने क्षेमरूप-सुंदर आकारवाळो छे, कोईक मार्ग क्षेम पण अक्षमरूप-खराब आकारवाळो छे, कोईक मार्ग अक्षेम पण क्षेमरूप (सुंदराकार) छे तेमज कोईक मार्ग अक्षेम अने अक्षेमरूप छे (६), ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक पुरुष क्षेम-भावथी साधुना गुण युक्त अने क्षेमरूप-द्रव्यथी साधुना वेष युक्त छे, कोईक साधुना गुण युक्त छे पण कारणवशात् साधुना वेप रहित छे, कोईक साधुना गुणथी रहित पण वेष युक्त छे अने कोईक गुण रहित अने वेष रहित पण छे (७), चार प्रकारना शंख कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईएक शंख वाम-प्रतिकूल गुणवाळो अने वामावर्त-उचरदिशा सन्मुख आवर्तवाळो छ, कोईक प्रतिकूल गुणवाळो पण दक्षिणावर्त छे, कोईक अनुकूळ गुणवाळो पण वाम आवर्तवाळो छे अने कोईक शंख अनुकूळ गुणवाळो अने दक्षिणावर्त छे (८), ए दृष्टांते चार प्रकारना पुरुषो कहेला छे, ते आ प्रमाणे-कोईक वाम-प्रतिकूल स्वभाववाळो अने वामावर्तप्रतिकूल वर्तनवाळो छ, कोईक प्रतिकूल स्वभाववाळो छ पण अनुकूल वर्तनवाळो छे, कोईक अनुकूळ स्वभाववाळो छ पण प्रतिकूळ वर्तनवाळो छे तेमज कोईक अनुकूळ स्वभाव अने अनकूळ वर्तनवाळो छ (९), चार प्रकारनी धूम्रशिखाओ कहेली छे, ते आ प्रमाणे-कोई एक धूमाडानी शिखा वामा--डावे पडखे जनारी अने वामावर्ता-डावा आवर्त(चकर)वाली छे, कोईक 1
४ स्थानकाध्ययने उद्देश! २ पुरुषाणामलमस्त्वादिचतुर्भगी सू० २८९
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