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महोत्सवनी समाप्ति पर्यंत स्वाध्याय न x करवो जोईए अने ते महोत्सव पूर्णिमा पर्यन्त ज समाप्त थाय छे. प्रतिपदाओ तो क्षणनी अनुवृत्तिवडे वर्जाय छ, अर्थात् पूर्णिमामा प्रतिपदानो स्वल्प कालनो संभव होवाथी प्रतिपदा वर्जवा योग्य छे. कयु छ केआसाढी इंदमहो, कत्तिय सुगिम्हए य बोद्धव्वो। एए महामहा खल, सव्वेसिं जाव पाडिवया ॥९०॥3 भावार्थ उपर मुजब छे.
अकालमा स्वाध्याय कर्ये छते आ प्रमाणे दोषो थाय छेसुयणाणंमि अभती. लोगविरुद्धं पमत्तछलणा य। विज्जासाहणवेगुन्न-धम्मया एव मा कुणसु ॥९॥
श्रुतज्ञाननी अभक्ति-विराधना थाय छे तथा लोकविरुद्ध थाय छे, केम के लौकिकमां पण रजस्वला प्रसंगमा अने गुमडा विगेरेना प्रसंगमा देवपूजन विगेरे कार्यों करता नथी तथा प्रमादी मुनिने समीप क्षेत्रवासी देवो छळे छे. जेम विद्याना साधनथी विरुद्ध सामग्रीवडे विद्या सफळ थती नथी तेम अकाळे स्वाध्याय करवाथी श्रुतज्ञान पण सफळ थतुं नथी; माटे हे शिष्य ! तुं अकालमां स्वाध्याय न कर,
सूर्योदय न थये छते पहेली संध्या, सूर्य अस्त पामवाना समयमां ते पश्चिमा संध्या. हमणा कहेल सूत्रथी विरुद्ध सूत्र
x आश्विन शुक्ल पंचमोना मध्याह्न पछीथी आरंभी गुजराती आश्विन वदि एकम पर्यंत स्वाध्याय न करवो, चैत्र मासमां पण ए प्रमाणे निषेध जाणवो, एम दीपिकाकार कहे छे,
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