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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Oxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx कथा ते आत्मशरीरसंवेगनी, एवी रीते बीजाना शरीरनु असारपणुं बतावनारी कथा ते परशरीरसंवेगनी ३, निवेदनी कथा चार प्रकारे कहेली छे, ते आ प्रमाणे-आ लोकमां आचरेल चोरी विगरे दुष्ट को आ लोकमां ज दुःखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छे, आ लोकमां आचरेल दुष्ट को परलोक-नरकादिमां दुःखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छ, परलोक (पूर्वजन्म)मां आचरेल दुष्ट कर्मो आ लोकमां दुःखरूप फलना विपाकने आपनार थाय छे तेमज परलोकमां आचरेल दुष्ट कर्मों परलोकमां दुःखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छे ४. आ लोकमां आचरल सारां को आ लोकमां सुखरूप फलना * विपाकने आपनारा थाय* छ १, आ लोकमां आचरेल सारां की परलोकमां सुखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छ २, | परलोकमां आचरेल सारां कमी आ लोकमा सुखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छ ३ तेमज परलोकमां आचरेल सारां कर्मों परलोकमां सुखरूप फलना विपाकने आपनारा थाय छे. (सू० २८२) टीकार्थ:-आ सूत्र सरळ छे, विशेष ए के-संयमने बाधक होबाथी विरुद्ध कथा-वचननी रीति ते विकथा, तेमां खीमोनी अथवा स्त्रीविषयक जे कथा ते स्त्रीकथा. आ कथा कहेली छ तथापि स्त्रीना विषयपणाए संयमथी विरुद्ध होवाथी विकथा छ एम समजवू, एवीरीते भोजननी, देशनी अने राजानी जे कथा ते विकथा छे. ब्राह्मणी विगरेमांथी कोईपण एकनी प्रशंसा अथवा निंदा जे जातिवडे अथवा जातिनी करवामां आवे छे ते जातिकथा, दा. त. “पतिना अभावे जे ब्राह्मगी मरेलानी जेम जीवे छे तेने धिकार छ, अमे मनुष्यमा शुद्र स्त्रीओने धन्य मानीए छीए के जे लाख पति कर्या छतां पण अनिंदित छे." एम उग्र कुल * आ चार भांगाना स्वामो टोकाना अनुवादमां कहेला छे, KXXXXXXXXXXXXXX For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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