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भीस्था-18| अने नालीएर विगेरेना तेलने विगयमां गणेल नथी.
४ स्थान नागपत्र | दवगुलीपंडगुला दो, मजं पुण कट्टपिटुनिष्फन्नं। मच्छियकोत्तियभामर-भेयं च तिहामहं होइ॥१९॥ काभ्ययने सानुवाद
द्रव्यगुड (नरम रसरूप) अने पिंडगुड (कटण) एम बे प्रकारे गोळ छे.मद्य-दारु बे प्रकारे छे १ एक काष्ठनिष्पन्न-शेलडी,ताडी उद्देश: १३८३॥
विगेरेथी थयेल अने २ पिष्टनिष्पन्न-चोखा विगेरेना पिष्टथी थयेल. मध त्रण प्रकारे छे, ते आ प्रमाणे-१ माक्षिक-माखी संबंधी, अग्रमहिष्यः २ कोंतिक-नानी माखी संबंधी अने ३ भमरी संबंधी. आ सर्व विगयस्वरूप छे.
विकृतयः जलथलखहयरमंसं,चम्मं वस सोणियं तिहेयंपि।आइल्ल तिन्नि चलचल, ओगाहिमगं च विगईओ ॥७॥
कूटागारा: जलचर, स्थलचर अने पक्षी संबंधी एम मांस त्रण भेदे छे, अथवा मांस, चरबी अने शोणित (लोही) एम पण त्रण प्रकारे छे. बळी घृत के तेल भरेल कडाईमा चळचळाट शब्दने करती थकी पूरी विगरे ज्यारे तळाय छे त्यारे एक घाण कहेवाय |
सू०२७३छे. एवी रीते पण बखत तळाय त्यां सुधी अवगाहिम-कडाविगय कहेवाय छे. चोथो घाण ते विगय कहेवाय नहिं, सेसान होति विगई अ, जोगवाहीण ते उ कप्पंती। परिभुज्जति न पायं,जं निच्छयओ न नजंति ॥७॥
शेष चोथा घाणमां तळेला पकवान विगेरे विगय कहेवाय नहिं पण नीवीयाता कहेवाय. ध विगेरे दरेक विगयना पांच पांच नीवीयातार छे ते योगने वहन करनार साधुओने कारणवशात् लेवा कल्पे छे, केमके प्रायः भोगवता नथी तेमज निश्चयथी
* दूध विगेरे छ भक्ष्य विगय छे अने तेना उत्तरभेद २१ छे. मांस विगेरे चार अभक्ष्य विगय छ, तेना उत्तरभेद बार छे. x ए दरेक विगयना नीवीयातानुं स्वरूप पच्चक्वाणभाष्यथी जाणवू.
४॥३८३॥
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