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नाङ्गसूत्र सानुवाद ॥ ३८२ ॥
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टीकार्थ:-'चमरस्से'त्यादिकम् अग्रमहिषी संबंधी सूत्रनो विस्तार सरळ छे. विशेष ए के-'महारन्नो'त्ति.
४ स्थानलोकपालनी मुख्य राणीओ-राजानी स्त्रीओ ते अग्रमहिपीओ,'वइरोयण'त्ति विविध प्रकारोबडे रोच्यते-दीपे छे ते विरोचनो, काध्ययने
ते ज वैरोचनो-उत्तर दिशामा रहेनारा असुरो,तेओनो इंद्र ते वैरोचनेंद्र.धरणना सूत्रमा 'एव'मिति एम ज जाणवू. कालवाला उद्देशः १ | जेम कोलवाल,शैलपाल अने शंखपालनी एज नामवाळी चार चार अग्रमहिपीओ जाणवी.ए जजणावतां कहे छे'जावसंखवालस्स'- | अग्रमहिप्यः त्ति०(उत्तर दिशानो इंद्र) भूतानंदना सूत्रमा 'एव मिति० एम ज जाणवू. जेम कालवालनी तेम बीजाओनी पण चार चार
| विकृतयः अग्रमहिषीओ जाणवी.विशेष ए के-लोकपालोना नाममा त्रीजाने ठेकाणे चोथो कहेबो अर्थात् वरुणना स्थानमां वैश्रमण कहेवो.
| कूटागारा जेम दक्षिण दिशाना नागकुमारनिकायना इंद्र धरणना लोकपालोनी अग्रमहिषीओ जे नामवाळी छे तेम बधा दक्षिण दिशाना
सू०२७३बाकीना-१ वेणुदेव, २ हरिकान्त, ३ अग्निशिख, ४ पूर्ण, ५ जलकान्त, ६ अमितगति, ७ वेलंच अने ८ घोष-आ आठ इंद्रोना जे लोकपालो सूत्रमा कहेला छे ते वधाओनी तेज नामवाळी अग्रमहिपीओ छे.जेम उत्तर दिशानो नागराज भूतानंद नामना इंद्रना लोकपालोनी अग्रमहिपीओना नामो कहेल छ तेम बाकीना-१ वेणुदाली, २ हरिस्स, ३ अग्निमानव,४ विशिष्ट, ५ जलप्रभ, ६ आमतवाहन,७ प्रभंजन अने ८ महाघोष नामना आठ इंद्रोना लोकपालोनी पण तेज नामवाळी अग्रमहिषीओ छ.एज कहे छ के'जहा धरणस्से'त्यादि० (सू० २७३) सचेतनोनुं अंतर कडं, हवे अंतरना अधिकारथी ज अचेतनविशेष विकृतिओनुं गोरस, स्नेह अने महत्त्वलक्षणरूप अंतरने त्रण सूत्रवडे सूत्रकार कहे छे-'चत्तारी'त्यादि०गायोनो रस ते गोरस, व्युत्पत्ति मात्र आ अर्थ समजवो. 'गोरस' शब्दनी प्रवृत्ति तो भेस विगेरेना दूध,दहिं आदि रसमां छे.शरीर अने मनने प्रायः विकारनो हेतु होवाथी विकृतिओ X॥३८२।।
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