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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भीस्थानाङ्गमत्र सानुवाद । ३७९॥ KXXXXMARA चत्तारि अग्ग० पं० तं०-सुणंदा सुभद्दा सुजाता सुमणा, एवं जाव सेलवालस्स जहा धरणस्स एवं सव्वेसिं दाहिणिंदलोगपालाणं जाव घोसस्स,जहा भूताणंदस्स एवं जाव महाघोसस्स लोगपालाणं (२) कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० तं०-कमला कमलप्पभा उप्पला सुदंसणा, एवं महाकालस्सवि, सुरुवस्स णं भूतिंदस्स भूतरन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० तं०रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा, एवं पडिरूवस्सवि,पुण्णभद्दस्स णं जक्खिदस्स जक्खरन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० २०-पुत्ता बहुपुत्तिता उत्तमा तारगा, एवं माणिभद्दस्सवि (३) भीमस्स णं रक्खसिंदस्स रक्खसरन्नो चत्तारि अग्गमहिसीओ पं०२०-पउमा वसुमती कणगा रतणप्पभा, एवं महाभीमस्सवि, किंनरस्स णं किंनरिंदस्स चत्तारि अग्ग० पं०२०-वडेंसा केतुमती रतिसेणा रतिप्पभा, एवं किंपुरिसस्सवि,सप्पुरिसस्स णं किंपरिसिंदस्स० चत्तारि अग्गमहिसीओ पं० त०-रोहिणी णवमिता हिरी पुप्फवती, एवं महापुरिसस्सवि (2) अतिकायस्स णं महोरगिंदस्स चत्तारि अग्गमहिसीओ पं०२०-भुयगा भुयगवती महाकच्छा फुडा, एवं महाकायस्सवि, गीतरतिस्स णं गंधटिबदस्स ४ स्थानकाध्ययने उद्देशः १ अग्रमहिष्यः विकृतयः कूटागाराः सू०२७३ ७५ xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx X॥३७९॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020755
Book TitleSthanang Sutra Ppart 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevchandra Maharaj
PublisherMundra Ashtkoti Bruhadpakshiya Sangh
Publication Year1943
Total Pages450
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_sthanang
File Size20 MB
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