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इस घटना से भगवान श्री ऋषभदेव प्रभु की महिमा बढती ही गयी जो भी कोई श्री ऋषभदेव प्रभु के दरबार में आता उसकी मनोकामना प्रतिमाजी के अधिष्ठायक पूर्ण करते थे। अतएव लोगों की श्रद्धा प्रभजी के मन्दिर में दृष्टि-गोचर होने लगो भाव भक्ति से लोगों ने प्रतिमाजी को केशर चढ़ाना शुरु कर दिया धीरे-धीरे केशर इतनी मात्रा में चढ़ने लगी कि प्रभुजी का नाम तक बदल गया और भगवान ऋषभदेवजी केशरियानाथ के नाम से ही पहचाने जाने लगे। ____ श्रीपाल महाराजा और महासती मयणासुन्दरी ने यहाँ नवपद की भाराधना करके कुष्ठ रोग का निवारण किया था तभी से यह जिनालय श्री सिद्धचक्राराधन-केशरियानाथ महातीर्थ के नाम से जग प्रसिद्ध हुआ ...।
काल की तूफानी चपेटों से बचता हुआ यह महातीर्थ उज्जयिनी नगरी में स्थिर रहकर अपना अस्तित्व बनाये था कि एक दिन अधिष्ठायक देवों ने यहां से भगवान श्री केशरियानाथ प्रभु की चमत्कारी प्रतिमाजी को पाताल मार्ग से मेवाड़ के बड़ोद गांव ले जाकर प्रतिष्ठित कर दी।
समय ने करवट बदली तो अधिष्ठायक देवों द्वारा वह प्रतिमा वहां से उदयपुर धुलेवा नगर में ले जाई गई। वर्तमान में धुलेवा में पुजित केशरियानाथ प्रभु की प्रतिमा वही है जो श्रीराम....सीताजी .. और लक्ष्मणजी के बाद श्रीपाल महाराजा और महारानी मयणासुन्दरी के द्वारा पूजाई गई थी। आज वह प्रतिमा केशरियाजी धुलेवा में उसी स्थिति में पूजा रही है।
श्रीराम लक्ष्मण और सीताजी के द्वारा प्रतिमाजी उज्जन लाना तथा उज्जैन में श्रीपाल महाराजा तथा महारानी मयणासुन्दरी द्वारा श्री सिद्धचक्रजी की आराधना वाली बात की सत्यताउजागर करताएक ऐतिहासिक शिलालेख यहां आज भी विद्यमान है। वर्तमान में तीर्थ का जीर्णोद्धार
विक्रम संवत १९९० में आगमोद्धारक ध्या. स्व. परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रोमान् आनंदसागरसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टशिष्यरत्न परम पूज्य मुनिमहाराज श्री चन्द्रसागरजी म. सा. अपने शिष्य समुदाय के साथ उज्जैन पधारे। वैसे पूज्य गुरुदेव को यहां लाने का श्रेय श्रेष्ठिवयं श्री हीरालालजी पिपलोन वालों को है । पूजा मुनिराज
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