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Achan
___ माने-एकेन्द्रियको द्रव्य या भाव में से कोई भी मन नहीं है, अतः यो असंही माना जाता है, तीर्थकर भगवान् मनके जरिए संशी हैं।
(बृहद् द्रव्यसंग्रह, जै० द० व० पृ० २०५ से २०८) (१०) मनोवलपाणः पर्याप्तसंज्ञिपंचेन्द्रियेष्वेव संभवति, तन्निबन्धन-वीर्यान्तराय-नोइन्द्रियावरणक्षयोपशमस्यान्यत्राऽभावात् ।
. (आ० माधवचन्द्र त्रैवेद्यदेवकृता जीवकांड बढी टीका पृ० ३४५)
माने-पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय में मनप्राण होता है अतः केवली भगवान में भी मन है। (११) कायवाक्यमनसा प्रवृत्तयो ।
नाभवस्तव मुनेश्चिर्षिया ॥७४।। केवली तीर्थकर भगवान् मन की प्रवृत्ति करते हैं
(स्वामी समन्तभद्रकृत बृहत्स्वयंभूस्तोत्रम् ) (१२) सणीण दस पाणा ॥१५॥ टीका-संज्ञिनः पर्याप्तस्य पुनः सर्वेपि प्राणा भवन्ति ।
(मूलाचार परि० १२ पर्याप्त्यधिकार) केवली संक्षीपर्याप्ता हैं उन्हें दश प्राण हैं। (१३) न विद्यते योगो मनवचा कायपरिस्पदो द्रव्यभावरूपो येषां
तेऽयोगिनः।
मानेकेवली भगवान् को मन वाणी और देह की क्रिया है, अयोगी केवलीको नहीं है।
(मूलाचार प• १२ गा. १५५ टीका पृ० २७५) दिगम्बर-केवली भगवान् मुक्त होते हैं तब सिद्ध बनते हैं। यहाँ श्वेताम्बर मानते हैं, कि-सिद्ध दशा में उनके चरम शरीर से त्रिभागोन २/३ अवगाहना रहती है। परन्तु दिगम्बर विद्वान इसका इन्कार करते हैं।
जैसाकि-५० शीतलप्रसादजी लिखते हैं कि
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