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अर्थ - अहो अहो तैं कहः राजकुमर सदृश लीला करके यह कौन जावे है ऐसा ग्रामीणने पूछनेसे नागरिक बोला अहो यह राजाका जमाई है ॥ ३३७ ॥
तं सोऊण कुमारो, सहसा सरताडिओव विच्छाओ । जाओ वलिऊण समागओय, गेहंमि सविसाओ ३८
अर्थ- वह नागरिकका वचन सुनके कुमर अकस्मात् वाणसे ताडितके जैसा उदासभया और विषाद सहित वहांसेही पलटकर अपने घर आया ।। ३३८ ॥
तं तारिसंच जणणी, दहूण समाकुला भणइ एवं, किं अज्ज वत्थ ! कोवि हु, तुह अंगे वाहए बाही ॥ ३३९ ॥
अर्थ - तब माता कुमरका वैसा उदास मुखदेखके व्याकुल भई इस प्रकारसे कहे हे वत्स आज तेरे शरीरमें क्या | कोई रोग पीडा उत्पन्न करे है ॥ ३३९ ॥
किं वा आखंडलसरिस, तुज्झ केणावि खंडिया आणा । अहवा अघडंतोवि हु, पराभवो केणवि कओ ते ४०
अर्थ - अथवा हे आखंडल सदृश हे इन्द्रतुल्य हे पुत्र तेरी आज्ञा क्या किसी पुरुषने खंडन करी अथवा अघटमान भी निश्चय तेरा अनादर किसीने किया जिससे तैं ऐसा देखनेमें आवे है ॥ ३४० ॥
किंवा कन्नारयणं, किंपि हु हियए खडुक्कए तुज्झ । घरणीकओ अविणओ, सो मयणाए न संभवइ ॥ ४१ ॥
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