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अर्थ-हुं हुं यह अनादरमें है राजा अनादरसे बोले उस लग्नका परमार्थ जाना जिससे उसने कोढ़ीको परणा मैं भाषाटीकाश्रीपालचरितम् | इसी वक्तही अपनी पुत्रीका पाणिग्रहण कराउंगा ॥ ५३॥
|सहितम्. रायाएसेण तओ, खणमित्तेणावि विहियसामग्गिं । मंतीहिं पहिढेहि, विवाहपत्वं समाढत्तं ॥ ५४॥18 ॥२०॥
। अर्थ-तदनंतर राजाकी आज्ञासे हर्षित मंत्री अमात्योंने विवाह उत्सव प्रारंभ किया कैसा विवाह पर्व क्षणमात्रमें द करीगई है सामग्री जिसकी ॥५४॥
तं च केरिसं उसियतोरणपयडपडायं, वज्झिरतूरगहीरनिनायं ।
नच्चिरचारुविलासिणिघट्ट, जयजयसद्दकरंतसुभद्रं ॥ ५५॥ अर्थ-वह विवाह पर्व कैसा है सो कहते हैं ऊचे किए हुए तोरणोंपर ध्वजाएं बाधी गई जिसमें और बहुत प्रकारके वादित्र बाजते हैं उन्होंका गंभीर ध्वनि है जिसमें और नाटक करती भई मनोज्ञ वेश्यादिकका समुदाय है जिसमें और भट्ट लोग जय २ शब्द करे है जिसमें ऐसा ॥ ५५॥ पदृसुयघडओलिजमालं, कूरकपुरतंबोलविसालं ।
॥२०॥ धवलदियंतसुवासिणिवग्गं, वुड्डपुरंधिकहियविहिमगं ॥५६॥
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