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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीपाल - चरितम् ॥ १४९ ॥ www.kobatirth.org सुत्तत्थवित्थारणतप्पराणं, नमो २ वायगकुंजराणं । साहूण संसाहियसंजमाणं, नमो नमो सुद्धदयादमाणं अर्थ — सूत्रार्थका विस्तार करनेमें तत्पर उपाध्याय कुंजर हाथीके सदृश गच्छकी शोभा करनेवाला होनेसे और समर्थ होनेसे ऐसे उपाध्यायोंको नमस्कार होवो तथा सम्यक् प्रकारसे साधा है संयम जिन्होंने ऐसे शुद्ध दया दम जिन्होंके ऐसे सर्व साधुओं को नमस्कार होवो ॥ १२०७ ॥ जिणुत्ततत्ते रुइलक्खणस्स, नमो नमो निम्मलदंसणस्स । अन्नाणसंमोहतमोहरस्स, नमो नमो नाणदिवायरस्स ॥ १२०८ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ — तीर्थकरके कहे हुए तत्वोंपर जो रुचि वह लक्षण जिसका ऐसे निर्मल दर्शनको नमस्कार होवो अज्ञानसे जो संमोह मतिभ्रम वही अंधकार उसको दूरकरे ऐसा ज्ञान सूर्यको नमस्कार होवो ॥ १२०८ ॥ आराहियाऽखंडिय सक्कियस्स, नमो नमो संजमवीरियस्स । कम्मद्रुमुम्मूलणकुंजरस्स, नमो नमो तिब्वतवोभरस्स ॥ १२०९ ॥ अर्थ — तथा संयम विषयमें पराक्रम उसको नमस्कार होवो कैसा संयम वीर्य आराधन किया है अखंडित सक्रिया साध्वाचार रूप जिससे ऐसा । कर्मवृक्षोंको उखाड़नेमें हाथीके सदृश तीव्र तप समूहको नमस्कार होवो ॥ १२०९ ॥ For Private and Personal Use Only भाषाटीकासहितम्. ॥ १४९ ॥
SR No.020724
Book TitleShripal Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiyashsuri
PublisherSanmarg Prakashan
Publication Year
Total Pages334
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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