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श्रीपालचरितम्
॥१४२॥
अर्थ-और जो तैने उस श्रीमतीके वचनसे सिद्धचक्रकी आराधना करी इस कारणसे यहां मदनसुंदरीके वचनसे| भाषाटीकासुख पाया ॥११५१॥
| सहितम्. जो एसो वित्थारो, रिद्धिविसेसस्स तुज्झ संजाओ।सोसयलोवि पसाओ, नायवो सिद्धचक्कस्स ॥११५२॥ | अर्थ-वह यह तेरे रिद्धिविशेषका विस्तार भया सो सर्व श्रीसिद्धचक्रका प्रसाद अनुग्रह जानना ॥ ११५२॥ सिरिमईसहिहिं जाहिं, विहिया अणुमोयणा तया तुम्ह। ताओ इमाओजायाओ, तुज्झ लहुपट्टदेवीओ५३/5 ___अर्थ-जिन श्रीमतीकी सखियोंने तुम्हारी अनुमोदना करी थी वह तेरी यह छोटी पटरानियों भई ॥ ११५३ ॥ एयासु अट्रमीए, ससवित्तीसंमुहं कहियमासि । खजसु सप्पेण तुमंति, तेण कम्मेण सा दट्ठा ११५४ ___ अर्थ-इन आठोंमें आठवीं रानीने पूर्वभवमें अपनी शोकके सन्मुख कहा था तेरेको सर्प खावो इसी कर्मसे इस भवमें सर्पने डसी ॥ ११५४ ॥ धम्मपसंसाकरणेण, तत्थ सत्तहिं सएहिं सुहकम्म। जं विहियं तेण इमे, गयरोगा राणया जाया ११५५ ___ अर्थ-धर्मकी प्रशंसा करने कर पूर्व भवमें ७०० सेवक पुरषोंने जो शुभकर्म किया उस शुभ कर्मसे गया रोग जिन्होंका ऐसे ये राना भए ॥ ११५५ ॥
॥१४२॥ सीहो य घायविहुरो, पालित्ता मासमणसणं दिक्खं । जाओहमजियसेणो, बालत्ते तुज्झ रजहरो ११५६||
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