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अर्थ – वह सातसै ७०० राजाके सेवक मरके क्षत्रियोंके पुत्र होके यौवन अवस्था में भी साधुवोंको किया उपसर्ग उस पापके प्रसादसे कोढ़ी भए । ११४७ ॥
जो सिरिकंतो राया, पुन्नपभावेण सो तुमं जाओ । सिरिमइजीवो मयणा, -सुंदरि एसा मुणियतत्ता ११४८
अर्थ- जो सिरिकान्त राजा था वह पुण्यके प्रभावसे तैं भया श्रीमतीरानीका जीव यह मदनसुंदरी भई कैसी है यह मदनसुंदरी जाना है तत्व जिसने ऐसी ॥। ११४८ ॥
जं पुर्व्विपि हु धम्मुज्जमपरा, तुहहियिकतलिच्छा । आसि इमा तं जाया, एसा तुह मूल पट्टमि ॥११४९ ॥
अर्थ — निश्चय जिस कारण से पूर्वभवमें भी धर्ममें उद्यम करने में तत्परथी और तेरे हितकरनेकी इच्छा जिसकी ऐसीथी तिस कारणसे यह तेरी मूल पटरानी हुई ॥ ११४९ ॥
तुमए जहा मुणीणं, विहिया आसायणा तहाचेव । कुट्टित्तं जलमजण, - मत्रि डुंबत्तं च संपत्तं ॥ ११५० ॥
अर्थ - तैने जिस २ प्रकारसे मुनियोंकी आशातना विराधना करी उस २ प्रकारसे तैंने इस भवमें कोढ़ीपना समुद्र में गिरना और डूमपना पाया ॥ ११५० ॥
जं च तए तीए सिरिमईइ, वयणेण सिद्धचक्कस्स । आराहणा कया तं, मयणावयणा सुहं पत्तो ॥ ११५१ ॥
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