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5] अर्थ-किस कारणसे सो कहते हैं जिस कारणसे कुलवालिका नाम सुकुलमें उत्पन्न भई कन्या ऐसा नहीं कहे मेरे
यह भर्तार होवो जो निश्चय मातापिताका दिया वर होवे वही प्रमाण करना ॥ ९१ ॥ अम्मा पिउणोवि निमित्तमित्त, मेवेह वरपयामि । पायं पुत्वनिबद्धो, संबंधो होइ जीवाणं ॥ ९२॥ ___ अर्थ-इस संसारमें कन्याओंके वरप्रदानमें माता पिताभी निमित्त मात्रही है परन्तु तात्विक कारण नहीं है प्रायै [जिनोंने पूर्वभवमें जिसके साथ सम्बन्ध रचा हो उसकेही साथ यहां सम्बन्ध होवे है ॥ ९२ ॥ जंजेण जया जारिसमुवजिय होइ कम्म सुहमसुहं । तं तारिसं तया से, संपज्जइ दोरियनिबद्धं ॥ ९३ ॥
अर्थ-जो जिस प्राणिने जिस कालमें जैसा शुभाशुभ कर्म उपार्जन किया होवे उस प्राणिके उस कालमें अर्थात् उदयकालमें वैसाही कर्म उदय आता है कैसा वह डोरीसे बंधाहोय वैसा ॥ ९३ ॥ दूजाकन्ना बहुपुन्ना, दिन्ना कुकुलेवि सा हवइ सुहिया।जा होइ हीणपुन्ना, सुकुले दिन्नावि सा दुहिया ९४ाद
अर्थ-जो कन्या बहुत पुण्यवाली होवे वह कुत्सित कुलमें अर्थात् दरियादिकुलमें दी भई सुखिनी होवे है और जो हीनपुण्यनी होवे वह अच्छे कुलमें दी भई दुःखी होवे है ॥ ९४ ॥
ताताय नायतत्तस्स, तुज्झनो जुज्झए इमोगहो। जंमज्झकयपसाया,पसायओ सुहदुहे लोए ॥१५॥ श्रीपा.च.३८ अर्थ-इस कारणसे हे पिताजी ! तत्वके जाननेवाले आप हो आपको ऐसा गर्व करना युक्त नहीं है जो मेरा किया
SANSARSA
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